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________________ गाथा परम विजय की अपने घर में। आपने संबंध भी किया, चिनगारी भी फेंक दी, अब आप कहते हैं - बागर में यह लाय मैंने नहीं लगाई तो किसने लगाई है यह लाय? हम यह बात मानने को तैयार नहीं हैं, इस बात का उत्तर हम चाहती हैं।' जम्बूकुमार के मन में चिन्तन आया - एक भूल पहले हो गई। माता और पिता ने संबंध कर लिया, मुझे पता भी नहीं चला। अब मैं यह कहूं कि माता-पिता की भूल है तो यह अच्छा नहीं। मैं इस भूल को मान लूं। यह भूल तो अवश्य हुई है और इनको कहने के लिए अवकाश मिला है। जम्बूकुमार ने इस तर्क को शांतभाव से सुना । दूसरे की आलोचना को शांतभाव से सुनना भी बड़ा कठिन है पर सम्यग् दृष्टिकोण होता है तो सम्यग् ग्रहण होता है। जम्बूकुमार बोला-'आप क्षमा करें। मान लें - यह भूल हो गई पर भूल को सुधारा भी जाता है।' 'हां।' 'मैं तुम्हें एक बात बताऊं। एक गोष्ठी थी। सौ-पचास आदमी सहभागी थे। भोज का आयोजन भी था । वहां एक लड़की के पास बढ़िया रूमाल था। रूमाल पर स्याही गिर गई। एक धब्बा सा हो गया। वह रोने लग गई। गोष्ठी की समरसता भंग हो गई। एक चतुर आदमी ने कहा- क्यों रोती हो ? लड़की ने रोते हुए अपनी व्यथा कही - 'देखो, मेरा रूमाल खराब हो गया, धब्बा लग गया । ' उसने कहा–‘तुम रूमाल मुझे दो।' वह आदमी चतुर कलाकार था और चित्रकार भी। रूमाल को हाथ में ले लिया। तूलिका इस प्रकार चलाई कि जो धब्बा था, उसका चित्र बना दिया । उसने चित्र बनाकर रूमाल उस लड़की को दिया। लड़की ने उसे देखा और नाचने लग गई, खुश हो गई- मेरा रूमाल कितना बढ़िया हो गया।' जम्बूकुमार ने कहा-'बहनो! तुम्हारा तर्क ठीक है । यह मान लें- भूल हो गई पर अब भूल को सुधारना तो है। बोलो, कैसे सुधारें?' प्रश्न है - कौन किसकी भूल सुधारेगा? क्या पत्नियां जम्बूकुमार की भूल को सुधारेंगी ? अथवा जम्बूकुमार पत्नियों की भूल को सुधारेगा ? १६३
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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