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________________ अलग-अलग भूमिका होती है और अलग-अलग व्याख्यान होता है। एक संभ्रांत नागरिक ने कहा'देखो, न तो कुमार को लड़कियों में विश्वास है और न लड़कियों को कुमार में विश्वास है फिर यह विवाह कैसा? दो व्यक्तियों का संबंध जुड़े तो सबसे पहले परस्पर विश्वास होना चाहिए। दोनों का एक-दूसरे में विश्वास कहां है! जम्बूकुमार कहता है - मैं अलग हो जाऊंगा । कन्याएं कहती हैं-हम अलग रह जाएंगी। यह कैसा संबंध है, समझ में नहीं आ रहा है। इनका श्वास और विश्वास कैसे टिकेगा ?' पास नहीं विश्वास तुम्हारे, कोरा श्वास जिलाएगा क्या? पास नहीं है हृदय तुम्हारे, कोई हृदय मिलायेगा क्या? तुम्हारे पास विश्वास नहीं है तो क्या कोरा श्वास जिला देगा ? कोरा श्वास कैसे जिलाएगा? आदमी विश्वास के आधार पर जीता है। जिसका विश्वास टूट गया, कोरा श्वास उसे जिला नहीं सकता। फिर वह श्वास भी कृत्रिम श्वास बन जाता है। एक धनी महिला का छोटा बच्चा बीमार हो गया। हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। मां मिलने आई। डॉक्टर से पूछा- मेरा बच्चा कैसे है ? डॉ. ने कहा- 'ठीक-ठाक चल रहा है। अभी तो उसको नकली श्वास दिया जा रहा है। ' महिला बोली-'डॉ. साहब! मेरे पास पैसे की कमी नहीं है। चाहें जितना धन ले लो पर नकली श्वास क्यों दे रहे हैं? उसे असली श्वास दो ।' नकली श्वास कैसे जिलायेगा ? न विश्वास है और न असली श्वास है। विश्वास के बिना असली श्वास आता भी नहीं है। जहां आदमी का विश्वास टूटता है, श्वास भी नकली बन जाता है। वह कैसे जिलाएगा? जिसके पास हृदय नहीं है, उससे कोई क्या हृदय मिलाएगा? हृदय तो होना चाहिए। समाचार मिला—मालिक का हार्ट फेल हो गया, हृदय का अवरोध हो गया। एक मजदूर बड़ा तेज-तर्रार था, बोला'अरे! कितना क्रूर आदमी था। हार्ट तो था ही नहीं । फेल क्या हो गया ?' एक व्यक्ति ने कहा—'जम्बूकुमार के हृदय में ममता नहीं है। कैसे दो हृदय मिलेंगे? यह बड़ा अजीब विवाह है। न तो विश्वास है न हृदय है। अगर जम्बूकुमार में हृदय होता तो इतनी क्रूरता नहीं करता। वह इन लड़कियों का जीवन बर्बाद नहीं करता । हृदय और विश्वास होता तो ऐसा धोखा भी नहीं देता।' एक व्यक्ति ने कहा—'जम्बूकुमार तो ऐसा निकला पर इन लड़कियों की बुद्धि कहां गई? इनके मातापिता की अक्ल कहां गई? क्या और कोई जीवन साथी नहीं मिलता ?' जहां दृष्टिकोण कोरा लौकिक होता है वहां लौकिक भूमिका पर सारी चर्चा होती है। वे नहीं समझ पा रहे थे कि जम्बूकुमार का कितना उदात्त चिंतन है, कितना ऊंचा विचार है, कितना सही दृष्टिकोण है। पर यह समझ में नहीं आ सकता। अपना-अपना चिंतन का स्तर होता है, अपने-अपने चिंतन की भूमिका होती है और उस भूमिका पर ही सारा विचार होता है। चर्चा-परिचर्चा का उत्तेजक वातावरण बन गया। विवाह के क्षणों में एक उत्सव, उल्लास का जो वातावरण होना चाहिए वह बिल्कुल नहीं रहा फिर भी उपचार चल रहा था, विवाह की रस्म भी अदा हो रही थी। संस्कारक ने विवाह का संस्कार संपन्न करा दिया, परस्पर विश्वास की शपथ दिला दी। १५२ गाथा परम विजय की m
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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