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________________ m/h4 . designsinesames गाथा परम विजय की नहीं थी, बहत ठाट-बाट और आडम्बर होता था। उस समय आबादी थोड़ी थी और बड़े लोग भी कम थे। आज जितने धनी हैं उतने पुराने जमाने में नहीं थे। आज जितने भूखे हैं उतने भूखे भी उस युग में नहीं थे। रोटी सबको मिल जाती थी पर अपार सम्पदा सबके पास नहीं थी। राजस्थानी कहावत है खाता-धापता परिवार है। अपनी रोटी-रोजी में मस्त रहते थे। सामान्य लोगों में यह मस्ती की स्थिति थी। जो बड़े लोग थे उनमें आडम्बर भी होता था किन्तु आज का चिंतन बदल गया, मानस बदल गया, स्थितियां भी बदल गईं। आज तो बदलना जरूरी भी है। तुम चाहे बदलो मत बदलो, युग ने तो करवट ले ली है। जिसने दीप जलाये शत शत, उसने भी होली खेली है।। बदलना जरूरी है। अब बिना बदले काम नहीं चलेगा। आज न इस भाषा में बोल सकते हैं जम्बूकुमार की बरात में इतना आडम्बर हुआ था तो हम क्यों न करें और न इस भाषा में कह सकते हैं-जम्बूकुमार ने जो सोचा, वह हम क्यों नहीं सोच सकते? अनेकांत का सिद्धांत है-पर्याय बदलता है। स्वभाव पर्याय प्रतिक्षण बदलता है। विभाव पर्याय समयसमय पर बदलता है। जम्बूकुमार का भी पर्याय बदल रहा है। वह अब तक कुमार था, अब वह वर बनकर जा रहा है। विशाल और भव्य बरात। राजगृह में ही विवाह था इसलिए बहुत दूर नहीं जाना पड़ा। एक स्थान पर सारी व्यवस्था हो गई। एक भव्य मंडप बना। उस मंडप पर सबका ध्यान अटक गया। सब उधर आने लगे, पूरी व्यवस्था कर दी गई। आठों कन्याएं, माता-पिता और परिवारजन आ गये। ऋषभदत्त अपने परिवार के साथ वहां पहुंचा। सैकड़ों, हजारों लोग इकट्ठे हो गए। एक ओर विवाह के मंडप में पाणिग्रहण का उपक्रम हो रहा है दूसरी ओर चर्चाएं भी हो रही हैं। जनता में यह कुतूहल हो गया एक नये ढंग का विवाह हो रहा है। किसी ने पूछा-नये ढंग का कैसे? 'क्या तुम नहीं जानते विवाह होगा और उसके बाद जम्बूकुमार मुनि बन जायेगा। जम्बूकुमार का विवाह और दीक्षा का संकल्प सर्वत्र चर्चा का विषय बन गया। जितने मुंह उतनी बातें। मुण्ड मुण्ड की न्यारी बुद्धि, तुण्ड तुण्ड की न्यारी वाणी, कुण्ड कुण्ड को न्यारो पाणी। ___ सब कुओं का पानी एक जैसा नहीं होता। किसी का पानी खारा होता है और किसी का मीठा। सबकी बुद्धि एक जैसी नहीं होती। सबकी वाणी भी एक सरीखी नहीं होती। कुछ लोग बोले-'देखो, यह भी कोई विवाह होता है? विवाह करने वाले समझदार नहीं हैं।' दूसरा व्यक्ति बोला-'कन्या के माता-पिता भी समझदार नहीं हैं। अगर समझदार होते तो यहां विवाह क्यों करते? जम्बूकुमार स्पष्ट कह रहा है-मैं तो साधु बनूंगा फिर विवाह करने की जरूरत क्या है?' . ___एक व्यक्ति ने कहा-'ऋषभदत्त भी समझदार नहीं हैं। अनावश्यक इन आठ लड़कियों का जीवन बर्बाद कर रहा है, थोड़ी भी समझ होती तो स्पष्ट मनाही कर देता कि हम विवाह के औपचारिक बंधन में नहीं बांधेगे।' १५१ -
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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