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________________ बार-बार आता और कहता–‘सेठ साहब! थोड़ी धर्म की बात सुन लो ।' सेठ कहता- 'मुझे फुरसत नहीं है। अभी एक लड़की की शादी करनी है। वह हो जाए फिर मैं तुम्हारी बात सुनूंगा।' लड़की का विवाह हो गया। कथावाचक ने कहा-'सेठ साहब! अब तो धर्म की बात सुनो।' सेठ ने कहा-'अभी नहीं, एक काम और बाकी है। अभी लड़के को दुकान में बिठाना है, होशियार करना है। वह हो जायेगा फिर सुनूंगा।' एक के बाद एक बहाना आता गया, कभी धर्म की कथा नहीं सुनी। वह एक दिन का समय भी नहीं निकाल सका और एक समय ऐसा आया कि सेठ मर गया। उसकी अर्थी सजी। उसे श्मशान घाट ले जाया जा रहा था। श्मशान - यात्रा में बीच का बासा लेते हैं, वहां अर्थी को रखा। उस समय कथावाचक आया, बोला- 'सब हट जाओ। मैं सेठ साहब को कथा सुनाना चाहता हूं।' लोग बोले—“कितने मूर्ख हो। आदमी तो मर गया, अब किसको कथा सुनाओगे ?' कथावाचक ने कहा- 'भाई! क्या करूं। जीते जी तो इसको समय नहीं था। अब यह बीच का बासा अच्छा समय है। अब मैं इसको कथा सुनाना चाहता हूं।' ‘मां! कल का क्या भरोसा? हो सकता है कि काल आपसे पहले मुझे ले जाए । ' हिवै जम्बूकुमार कहे मात ने, मोनें खबर न कोय । कदा थां पहली हो माता मो भणी, काल झपट ले जाय ।। ‘मां! कल को किसने देखा है? कल के भरोसे आज श्रेयस पथ से विमुख क्यों बनूं?' मां! मेरा तो यह संकल्प दृढ़ है कि मुझे मुनि बनना है, आत्मा को देखना है, केवली बनना है।' जिसको जो होना होता है, वह भावना पहले ही जाग जाती है । जम्बूकुमार को केवली होना था, उसके मन में यह ललक पैदा हो गई - मुझे आत्मा का साक्षात्कार करना है। आत्मा को मानना एक बात है, आत्मा को जानना दूसरी बात है और आत्मा को साक्षात् देखना तीसरी बात है। तीनों भूमिकाएं अलग-अलग बन जाती हैं। जम्बूकुमार के मन में एक गहरी प्यास है आत्मा को देखने की। मां के मन में प्यास है बुढ़ापे में सेवा की। दोनों की प्यास अलग-अलग है। किसकी प्यास बुझेगी? जम्बूकुमार की या माता धारिणी की ? १२४ गाथा परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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