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________________ शिक्षाप्रद कहानिया 143 व्यक्ति बकरे को लेकर वन में गया। वहाँ उसने सारा दिन कोमल-कोमल हरी घास अपने हाथों से तोड़-तोड़कर खिलायी। जैसे ही शाम हुई उसने सोचा कि अब तो बकरे का पेट भर गया होगा, क्योंकि सारा दिन मैंने अपने हाथों से तोड़कर घास खिलायी है। वह बकरे को लेकर राजा के सामने उपस्थित हो गया। राजा ने थोड़ी हरी घास बकरे के सामने रखी, तो बकरा तुरन्त ही उसे खाने लगा। यह देखकर राजा व्यक्ति से बोलातुमने इसे पेटभर खिलाया ही नहीं वर्ना, यह घास क्यों खाने लगता? इसी प्रकार कमशः राज्य के कई व्यक्तियों ने प्रयत्न किया लेकिन कोई भी सफल न हो सका। उसी समय उस राज्य में किसी तत्त्वचिंतक व्यक्ति का आगमन हुआ। उसने भी सारी बात सुनी। उसने मन-ही-मन सोचा कि अवश्य ही इस घोषणा में कोई रहस्य है, तत्त्व है। उसने मन में किसी युक्ति का विचार किया और राज दरबार में उपस्थित हो गया और राजा से बोलामैं आपके बकरे को तृप्त कर के लाऊँगा। राजा ने उन्हें बकरा दे दिया और वह बकरे को लेकर वन में चला गया। अब जब भी वह बकरा घास खाने लगता तो वह व्यक्ति उसे डंडे से मारता। पूरे दिन यही प्रक्रिया चलती रही। अंत में बकरे के मन में यह बात अच्छी तरह से बैठ गयी कि मैं जब भी घास खाने का प्रयास करता हूँ तो मार खानी पड़ती है। __शाम को वह व्यक्ति बकरे को लेकर राजदबार में उपस्थित हुआ। बकरे को बिल्कुल भी घास नहीं खिलाई गयी थी, लेकिन उसने राजा से कहा कि मैंने इसे भरपेट घास खिलाई है, अतः यह अब बिल्कुल घास नहीं खाएगा। आप परीक्षा कर लीजिए। राजा ने घास डाली लेकिन बकरे ने खाना तो क्या उसे देखा और सूंघा तक नहीं। बकरे के मन में यह बात अच्छी तरह से बैठ गयी थी कि अगर मैं घास खाऊँगा तो मार पड़ेगी।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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