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________________ 142 शिक्षाप्रद कहानिया जब उसे काफी देर हो गयी तो वह परेशान हो गया और सोचने लगा कि कमाल हो गया। आखिर जौहरी ने रत्न कहाँ छिपाकर रखा है। और उसने एक बार फिर ढूँढना शुरु कर दिया। लेकिन उसे रत्न कहीं भी नहीं मिला। अंत में उसने खूब थक-हारकर जौहरी को जगाया और कहा कि'आप मुझे पहचानते ही होंगे मैं प्रसिद्ध ठग हूँ आज तक मैने बहुत लोगों को ठगा है। लेकिन, आज पहली बार मैं अपने काम में असफल हुआ हूँ। कृपया आप मुझे बताइए की आखिर वह रत्न आपने कहाँ छिपा कर रखा है। मैं आपको कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगा बल्कि आज के बाद मैं आपको अपना गुरु मानूँगा। ___ यह सुनकर जौहरी ने मुस्कुराते हुए कहा कि- जरा अपना थैला मेरे पास लाओ। ठग ने तुरन्त अपना थैला जौहरी को दे दिया। जौहरी ने थैले में से रत्न निकाला और ठग को दिखाते हुए बोला रत्न तो आपके ही थैले में था। आपने हर जगह ढूँढा लेकिन अपने थैले में नहीं ढूंढा। इसी प्रकार हम सबकी स्थिति भी ठग की तरह ही है क्योंकि हम भी अपने को अपने अन्दर ढूँढने का प्रयास नहीं करते हैं। ६२. मनोनिग्रह किसी राजा के पास एक बकरा था। एक बार राजा ने घोषणा करवायी कि जो कोई भी व्यक्ति इस बकरे को चराकर तृप्त कर देगा, उसे मैं अपने राज्य का आधा हिस्सा उपहार में दूँगा, लेकिन मेरी एक शर्त है कि बकरे का पेट पूरा भरा है कि नहीं इसकी परीक्षा मैं स्वयं करूँगा। उक्त घोषणा सुनकर राजदरबार में व्यक्तियों की लाइन लग गयी सभी कहने लगे मैं जाऊँगा, मैं जाऊँगा क्योंकि, आधे राज्य का सवाल था इसलिए हर कोई अवसर पाना चाहता था। सभी आपस में बात कर रहे थे कि यह भी कोई बड़ी बात है क्या? भला इस काम को कौन नहीं कर सकता? अन्त में राजा ने एक व्यक्ति को यह काम सौंप दिया।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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