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________________ 133 शिक्षाप्रद कहानिया पिता जी यह सुनकर बड़े ही चिन्तित हुए और उसके भविष्य की चिन्ता करते हुए बोले- 'अच्छा, तुम मत करो खेती, तुम व्यापार कर लो, मैं तुम्हें एक दुकान खोल देता हूँ और किसी अच्छे व्यापारी से तुम्हें व्यापार करना भी सिखवा देता हूँ।' पिता की बात सुनकर वह बोला नौ नगद न तेरह उधार, आज चढ़ाव कल उतार। मैं मर जाऊँगा, पर दुकान न चलाऊँगा॥ तब पिता जी ने खीजते हुए पूछा- आखिर तुम करना क्या चाहते हो? 'न पढ़ाई, न जुताई, न दुकान की कमाई- तो फिर नौकरी करेगा क्या? यह सुनते ही मोटेराम बत्तीसी दिखाते हुए हँसा और बोला हींग लगे न फिटकरी, सबसे अच्छी नौकरी। मैं नौकरी करने जाऊँगा, खूब कमाकर लाऊँगा। यह बात सुनकर पिता जी ने उसे समझाने का भरसक प्रयत्न किया और कहा कि- 'देख बेटा, जितना आसान तू समझ रहा है न उतना आसान नहीं है नौकरी करना। ऊपर से तू ठहरा अनपढ़। पहली बात तो यह है कि तुझे कोई नौकरी पर रखेगा नहीं और दूसरी बात यह कि अगर कोई रख भी लेगा तो मेहनत-मजदूरी ही करवाएगा। या तो पशुओं की रखवाली करवाएगा या घरेलू काम करवाएगा। जो कि तुझसे होंगे भी नहीं।' इस प्रकार पिता जी ने और भी कई बातें उसे बताई। लेकिन, मोटेराम तो था मोटेराम और उसने जिद पकड़ ली कि करेगा तो नौकरी ही करेगा। इसके अलावा कुछ नहीं। _ और इसके बाद पिता जी ने दूसरे गाँव में किसी सेठ के यहाँ मोटेराम की नौकरी लगवा दी। उसने वहाँ पाँच वर्ष तक नौकरी की। छठे वर्ष जब वह छुट्टी लेकर घर जाने लगा तो सेठ ने उसे पाँच हजार रुपए वेतन के रूप में दिए। रूपए लेते हुए मोटेराम नाक-भौं सिकोड़ते हुए बोला- “रुपए खटाखट। नोट फटाफट। कैसे इन्हें भुनाऊँगा। मैं तो फुटकर लेकर जाऊँगा।'
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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