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________________ 132 __ शिक्षाप्रद कहानिया केवल विद्या के बल से ही भोजन प्राप्त कर लेता है। उक्त श्लोक में विद्या का महत्त्व बतलाया गया है। इसी सन्दर्भ में मैं यहाँ एक कहानी लिखने का प्रयास कर रहा हूँ। किसी गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। कालक्रमानुसार उसका विवाह हुआ। विवाह के दो साल बाद उसके यहाँ एक पुत्र उत्पन्न हुआ। खूब हर्षोल्लासपूर्वक उसका जन्मोत्सव मनाया गया तथा उसका नाम रखा गया- मोटेराम। धीरे-धीरे जब मोटेराम पाँच वर्ष का हो गया तो ब्राह्मण ने उससे कहा- 'बेटा, अब तुम पढ़ने जाया करो।' लेकिन मोटेराम को न तो पढ़ने में रुचि थी और न ही कोई प्रयत्न करता था। बल्कि, इसके विपरीत वह पिता जी को कोई कुतर्क दे देता था। एक दिन उसके पिता ने जब पुनः प्रयत्न किया तो वह कहने लगा। पाठ रटारट, दाँत कटाकट। मैं मर जाऊँगा, पर पढ़ने न जाऊँगा। यह सुनकर पिता जी बड़े दु:खी हुए। लेकिन वे यह सोचकर चुप लगा गए कि अगर इसने कोई उल्टा-सीधा कदम उठा लिया तो मैं क्या करूँगा? यह मेरा इकलौता पुत्र है। इसी प्रकार समय फिर अपनी गति से बढ़ने लगा। मोटेराम 15 वर्ष का हो गया। पिता ने फिर कुछ सोचकर उससे कहा- 'देख बेटा, तुमने पढ़ाई तो नहीं की। लेकिन, जीवन निर्वाह के लिए मनुष्य को कुछ तो करना ही पड़ता है। अतः अब तू खेती किया कर, हल चलाया कर। अपने पास अच्छे-भले कई खेत हैं, उनसे तुम्हारा और भविष्य में होने वाले तुम्हारे परिवार का जीवन निर्वाह अच्छी तरह हो पाएगा।' यह सुनकर मोटेराम बोला कौन बैल हाँके, कौन धूल फाँके। मैं मर जाऊँगा, पर हल न चलाऊँगा॥
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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