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________________ यशोगाथा अंग्रेज विचारक कोल्टन की उक्ति है कि "समसामयिक लोक व्यक्ति विशेष का मूल्यांकन उसके गुणों की अपेक्षा उसके व्यक्तित्व के आधार पर करते हैं, जबकि भावी पीढ़ियां उसके व्यक्तित्व को अपेक्षा उसके गुणों का आदर करते हैं।" कोई भी व्यक्ति केवल गुणों का ही पूज अथवा सर्वथा निर्दोष नहीं होता / ब्रह्मचारी जी में अनेक गुण थे तो कुछ दोष भी रहे होंगे / एक समय उनके कतिपय विचारों को लेकर तीब्र विरोध भी भड़के, उनके बहिष्कार भी किये गए, उनके अनेक निन्दक भी हो गए, किन्तु जो गुणग्राही होते हैं वे व्यक्ति के दोषों पर दृष्टिपात नहीं करते, वरन् उसके गुणों, उपलब्धियों और सेवाओं के लिए उसका आदर--सम्मान करते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं। यही उस महान् व्यक्ति की विरासत है जिससे आने वाली सन्ततियां लाभ उठा सकती हैं, और उठाती रहेंगी / वस्तुतः ब्रह्मचारी जी के संबंध में नीचे जिन सज्जनों के विचार दिए जा रहे हैं उनमें देशी, विदेशी, जैन, जैनेतर, दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थितिपालक, और सुधारवादी, पंडित और बाबू विविध वर्गों के और विभिन्न स्थानों के प्रतिष्ठित प्रतिनिधि हैं। कुछ एक उनमें वय ज्येष्ठ हैं, कुछ समाय हैं, तो अनेक कनिष्ठ हैं / उनके विचारों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मचारी जी के जीवन-काल में भी उनकी गुण-प्रशंसा, ख्याति, सम्मान और प्रतिष्ठा अत्यधिक रही और यह कि उनका मिशन, उनके आदर्श और विचार, उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व तथा उनकी धर्म, संस्कृति एवं समाज के प्रति सेवायें और उपलब्धियाँ चिरकाल तक प्रेरणाप्रद बनी रहेंगी। इस संक्षिप्त यशोगाथा के आलोक में ब्रह्मचारी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का मूल्यांकन करके उससे त्यागीजन एवं समाजसेबी स्त्री पुरुष वांछित मार्ग-दर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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