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________________ कितने हैं ? तो यह तो प्रायः प्रत्येक महापुरुष के साथ होता आया है। इससे उनका तो कुछ बनता बिगड़ता नहीं, वह तो अपना कर्तव्य कर्म अपनी पूरी क्षमता के साथ करके चले गये ? किन्तु आने वाली जो पीढ़ियां उन्हें नकार देती हैं, या सच्चे मन से स्वीकार नहीं करतीं, उनके कार्यों, दिशा निर्देश एव जीवन से प्रेरणा नहीं लेतीं, उनकी ही क्षति होती है। वे सहज सुलभ लाभ से वंचित हो जाती हैं। प्रस्तुत पुस्तिका में स्व० ब्रह्मचारी जी के प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व एवं कृतित्व का जो संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास किया गया है उसका मुख्य उद्देश्य यही है कि अपने इस कर्मठ उपकारी महापुरुष की स्मृति से, कार्यकलापों से, शिक्षाओं से वर्तमान एवं भावी पीढ़ियां प्रेरणा लेती रहें और ऐसे निस्वार्थ समाज - सेवी समाज में पैदा होते रहें, आगे आते रहें, जो अपने समय की परिस्थितियों एवं परिवेश में स्वधर्म में आस्था वनाये हुए समाज को प्रगति पथ पर सतत् अग्रसर करते रहें। आज समाज में धर्म, संस्कृति और समाज के ऐसे निस्वार्थ सच्चे समर्पित सेवियों एवं कार्यकर्ताओं की कमी अत्यधिक खटकने वाली चीज है। संभव है कि ब्रह्मचारी जी के आदर्शों से प्रेरणा लेकर इस भावना का और उसकी आवश्यकता का स्फुरण हो जाये / उनकी शाँति ऐहिक काम-भोगों से विरक्त होकर तथा शरीर की स्पृहा को छोड़कर निर्ममत्व प्राप्त करने वाले ज्ञानी-ध्यानी होना तो बहुत बड़ी बात है. किन्तु अपने-अपने स्थान पर समाज के सर्वतोमुखी उन्नयन एवं धर्म की सच्ची प्रभावना में स्वशक्त्यानुसार योग देने की भावना तो जन सामान्य में से अनेकों के हृदय में जागृत हो सकती है और उन्हें अपने कर्तव्य के प्रति सचेष्ट कर सकती है। किसी ने कहा है कि " चिता पर भस्म तो सभी होते हैं, विरले हैं जो भस्म तो होते हैं मगर अगरबत्ती की तरह वातावरण को उनकी सुगंध का आभार-ऋण स्वीकार करना होता है / "तो अभी तो स्व ब्रह्मचारी जी रूपी अगरबत्ती की महक भले ही उत्तरोत्तर क्षीण होती हुई भी, बातावरण में व्याप्त है. तथापि समाज उस सुगंध का आभार ऋण स्वीकार नहीं करें तो क्या कहा जाय ? हम ब्रह्मचारी जी का जन्म दिवस व उनकी पुण्यतिथि प्रतिवर्ष उनके आदर्शों, विचारों, ग्राह्य शिक्षाओं आदि का प्रचार करके. समाज सेवा का व्रत लेकर, उनकी प्रकाशन योग्य रचनाओं का प्रकाशन और प्रचार करके तया उनके जीवन से प्रेरणा लेकर कर ही सकते हैं। इस प्रकार ही उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के प्रति सच्ची श्रद्धान्जलि अर्पित की जा सकती है।
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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