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________________ महात्मा भगवानदीन ब्रहमचारी जी को देह मामली मिली थी, आत्मा जबरदस्त / वे जैब बोलते थे ती ऐसा मालूम होता था मानों देह नहीं, आत्मा बोल रही है / उनका स्वाभिमान अपनी रक्षा के लिए न था किन्त जैन धर्म की रक्षा के लिए था / बाबू सूरजभान वकील ब्रहमचारीजी अत्यन्त सहनशील प्रकृति के थे, अपने काम में बराबर अपनी धुन के साथ लगे रहते थे। वैसा परिश्रमी मेरे जीवन में अन्य कोई दृष्टिगोचर नहीं हुआ। पं० जुगलकिशोर मुख्तार अपनी सेवाओं द्वारा उन्होंने जैन समाज के व्रहमचारियों एवं त्यागी वर्ग के लिए कर्मठता का एक आदर्श उपस्थित किया / बा० अजितप्रसाद वकील ब्रहमचारी जी ने दिगम्बर जैन समाज के हितार्थ, उत्थानार्थ और जैनधर्म के प्रचारार्थ अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। धार्मिक तथा सामाजिक कार्य के सामने वह अपने शारीरिक कष्ट या स्वास्थ्य हानि का कुछ भी ख्याल नहीं करते थे / डा. बनारसी दास पंजान युनिवर्सिटी में जैन अनुशीलन का बीजारोपण ब्रहमचारी जी ने ही किया / म. बेमीप्रसाद / उन्होंने अपने तमाम गुणों को उन आदर्शों की सेवा में लगा दिया जिनमें उनका पूरा विश्वास था तथा जिन पर वह दृढ़ता से संलग्न 0 बिमल चरण साहा वह जैन धर्म के जेटिल विषयों को बौद्ध तत्वों का उल्लेख को समझाने में बड़े सफल होते थे /
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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