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________________ ब्रह्माचारी जी के वाक्य दीप 4 देश सेवा धर्म है - ब्रत कठिन है। यह एक ऐसा यज्ञ है जिसमें अपने को होम देना होता है। अपने को भारतीय समझो। अहिंसा वीरों का धर्म है, धैर्यवानों का धर्म है, यही जगत की रक्षा करने वाली है। भारत की गुलामी का कारण अहिंसा नहीं, बल्कि हिन्दू राजाओं के भीतर परस्पर फूट होना है / धर्म तो वह साधन है, वह ज्ञान है, वह आचरण है जो देहधारी प्राणी को संसार के दुख से बचाकर अक्षय अनन्तसुख में पहुंचा देता है / वह धर्म स्त्री-पुरुष, युवक, वृद्ध, रोगी दरिद्री, लक्ष्मीपति, हर कोई ग्रहण कर सकता है / जैन धर्मानुयायी स्वतः सुखी रहता है और किसी अन्य जीव को मानसिक या शारीरिक कष्ट नहीं देता। जिस आत्मा में अपने आत्मिक गुणों का विकास करने में उनका सच्चा स्वाद लेने में, उनको स्वाभाविक अवस्था के विकास करने में, कोई पर वस्तु के द्वारा विघ्न वाधा नहीं है, वहां स्वतंत्रता का सौन्दर्य है / स्वतंत्रता आभूषण है, परतन्त्रता बेड़ी है / स्वतन्त्रता प्रकाश है, परतंत्रता अंधकार है / स्वतंत्रता मोक्षधाम है, परतन्त्रता संसार है। लोकालोक का ज्ञाता शुद्ध चैतन्यमय अविनाशी, निर्विकल्प परमानंदस्वरूप प्रभु अपने स्वरूप को भूलकर परपद में आरूढ़ हो खेदित हो रहा है। यदि अपने पुरुषार्थ को सम्हालें, कुमार्ग को त्याग सुमार्ग पर आवें, एकान्त में या सुसंगति में विचार करें तो अपने हौ बल से मिथ्यात्व गुणस्थान छोड़ने में सामर्थ्यवान हो, सम्यक्त्वगुणस्थान पर पहुंच जाता है।
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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