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________________ यह छंद अघहन हो चौ-यछ में गाये, बदि पंदरस परथम पहर मन में उपजाये। मन वचन सुचि कर जो नर-नारी गावें, डूब सुखोदधि, चित्त विकार मिटावें // 7 // जिस दिन शीतल प्रसाद जी ने ब्रह्मचर्य प्रतिमा ग्रहण की थी, उसी दिन ऊषाकाल में उन्होंने उपरोक्त भावनाओं की रचना की थी। और इन्हीं वैराग्योत्पादक छदों को गुनगुनाते हुए वह शोलापुर में अगहन वदी 15, वीर-निर्वाण संवत् 2436, तदनुसार सन् 1606 ई० की प्रोतः वेला में पूज्य ऐल्लक पन्नालाल जी के समक्ष दीक्षा लेकर सातवी प्रतिमाधारी परिव्राजक बने थे। ब्रह्मचारी जी का एक प्रिय भजन सुन मूरख प्राणी, के दिन की जिन्दगानी, दिन-दिन आयु घटत है तेरी, ज्यों अंजली का पानी। काल अचानक आना पड़े तब चले न आना कानी / सुन मूरख प्राणी ............................. कोड़ी-कोड़ी माया जोड़ी, बन गये लाख करोरी। अंत समय सब छूट जायेगा, न तोरी न मोरी // सुन मूरख प्राणी ........................ ताल गगन पाताल बनों में, मौत कहीं न छोड़ी। तहखानों तालों के अन्दर, गर्दन आन मरोड़ी // सुन मूरख प्राणी ....
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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