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________________ ऐतिहासिक स्त्रियाँ नारदको पकड़ना चाहा। जैसे तैसे नारदसे उन रक्षकोंसे अपना पिंड़ छुड़ाया और भयभीत हो, किसी पर्वतके ऊपर बैठकर वैरका बदला लेनेकी ठानी। कुछ सोच विचारकर सीताका चित्र खीचा। और सीताके भाई भामंडलको वह चित्र दिखाया। यह चित्र इतना मनोहर था कि उसको देखने मात्रसे भामंडलका चित्त मदनबाणौसे पीड़ित होने लगा। नाना उपचार करने पर भी, उनकी यह व्यथा बढ़ती ही गई। और इतने विचारशून्य हो गये कि किसीकी लाज न करके सबके सामने 'सीता सीता!' शब्दका पाठ करने लगे। इस बातको चन्द्रगतिकी रानीने सुना। और समस्त वृतांत अपने पतिसे कहा। चंद्रगति इस समाचारको सुनकर अति विस्मित हुआ। और भामण्डलके पास आकर बहुत समझाया पर उसने एक न मानी। तब चंद्रमतिने यह स्थिर किया कि सीताके पिताको यही बुलाना चाहिये। और भामंडलके लिये सीताकों मांगना चाहिये। इस कामके लिये चंद्रगतिके एक विद्याधरको नियुक्त किया। और वह विद्याधर अपनी विद्यासे जनकको रथनुपुर ले आया। जनकके सामने यह प्रस्ताव उपस्थित किया गया। जनकने किसी समय अपने विचारको इस तरह स्थिर किया था कि समस्त विद्याओंमें निपुण-सकल कलाओंमें प्रवीण-सीता महाराज दशरथके ज्येष्ठ पुत्र रामचंद्रजीको दूंगा। इस कारण राजा जनकने चंद्रगतिके प्रस्तावकों मंजूर नहीं किया। तब विद्याधरोंका अधिपति चन्द्रगति और उसके अनुयायी विद्याधर अति क्रुध हुए। और सहसा बोल उठे कि यह वज्रावर्त और सागरावर्त्त नामके धनुष हैं, इनकी जो कोई चढ़ायेगा,
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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