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________________ श्रीमती सीताजी [9 वही सीताका पति होगा। जनकने इस बातको स्वीकार किया और वे विद्याधर उन दोनों धनुषोंको लेकर जनकके साथ मिथिलापुरीको आये। जनकने समस्त राजमंडलको निमंत्रण दिया। चारों तरफसे नाना देशोंके अनेक वीर राजा मिथिलापुरीमें आये। राजा दशरथ भी अपने पुत्रों सहित उस स्थान पर आये। सभामंडप बनाया गया। राजा और राजकुमार अपने अपने आसनपर आकर बिराजे। रामचंद्र और लक्ष्मण भी अपनेर आसन पर बैठ गये। ___ आज सीताका स्वयंवर दिन है। राजाओंके हृदयमें अनुपमसुन्दरी सीताका ध्यान लग रहा है। कोई राजा विचारता है कि इसके बिना संसारमें रहना व्यर्थ है। और कोई विचारता हैं इसके रूप और लावण्यके योग्य मैं ही हूं; और कोई इसके योग्य नहीं। इस प्रकार सभामण्डपमें उपस्थित राजागण मनमानी कल्पना कर रहे थे। उसी समय यह प्रस्ताव उपस्थित किया गया अर्थात् इस बातकी घोषणा की गई कि वही राजकुमार इस परम सुन्दरी सीताका पति होगा जो कोई इस "वज्रावर्त" धनुषको चढ़ायेगा। वह धनुष बड़ा ही भीषण था, विद्याधरों द्वारा रक्षित था, तथा उसमेंसे अग्निस्फुलिगाओंकी रक्त ज्वालायें, ब.२ के धैर्यकी च्युत करनेवाली निकल रही थी। बड़े बड़े भुजङ्ग अपनी भयावनी जीभे निकाल रहे थे। पर कामके वशीभूत राजगण कब डरनेवाले थे वे मृत्युके मुखमें प्रवेश करनेको तैयार हो गये! अर्थात् धनुषको चढ़ानेके लिये उद्यम करने लगे। पर किसी भी राजाको चढानेकी बात तो दूर उसके पास जानेका भी साहस नहीं हुआ। समस्त राजा अपनार सिर घूनने लगे।
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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