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________________ श्रीमती सीताजी [7 चरित्र इन गुणोंसे इतने महत्वका है कि न केवल वह आदर्श ही किंतु मनुष्य मात्रको उपादेय और अनुकरणीय है। यह रामचंद्रादि पिताके आज्ञापालक, सत्यप्रतिज्ञ, जितेन्द्रिय और असाधारण धैर्यशाली थे। आपत्तिकालमें धीरता रखना दुःखितों के दुःखको दूर करना तथा धर्मकी सच्ची प्रभावना करना ही इनके प्रधान गुण थे। सीताजीका वंश परिचय जिस प्रकार इक्ष्वाकु वंशमें आदर्श राजाओंने जन्म पाया हैं, उसी प्रकार हरिवंश भी प्रख्यात राजाओंका जन्मदाता है। इस वंशके राजागणोंकी गुणगरिमाने इतिहासमें अच्छा स्थान पाया है। इसी वंशमें मिथिलापुरीका अधिपति इन्द्रकेतु नामक महाप्रतापी राजा हुआ। तथा इनके जनक नामक पुत्र हुए जो कि अपने पिता इन्द्रकेतुके स्वर्गारोहणके पश्चात् राज्यके शासक हुए। इनका पाणिग्रहण विदेहा नामकी किसी राजपुत्रीसे हुआ था। पाणिग्रहणके कुछ दिन पीछे इन जनकको विदेहासे युगल संतानकी उत्पत्ति हुई। जिसमें एक कन्या और एक पुत्र था। पूर्वजन्म के वैरसे कोई देव पुत्रको उठा ले गया व पीछे दयासे किसी स्थानपर छोड़ दिया। रथनुपुर नगरके चंद्रगति विद्याधर राजाने उसको पाया। और अपने घर ले जाकर उसे पाला पोवा। इधर जानकी भी दिन दिन बढ़ने लगी। / एक दिन नारद सीताको देखनेको आये। सीताने पहले कभी ऐसे मनुष्यको नहीं देखा था। इसलिये नारदको देखकर कोठेमें घुसने लगी। यह कोलाहल देखकर, महलके रक्षकोंने
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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