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________________ ( 2 ) पश्चात् क्रियापद, तत्पश्चात् 'रावण'। 'राम' और 'रावण' के स्थान का विपर्यय हो जाय तो अर्थ का अनर्थ हो जाय। हिन्दी में भी अंग्रेजी के समान क्रिया का स्थान निश्चित है। जहाँ हिन्दी में क्रिया वाक्य के अन्त में प्रयुक्त होती है, वहाँ अंग्रेजी में यह 'कर्ता' और 'कर्म' के बीच में आती है। अंग्रेजी में कर्ता और कर्म कभी भी साथ-साथ नहीं पा सकते / हिन्दी में भी कर्ता और कर्म चाहे साथ-साथ आ जायें, पर क्रिया वाक्य के प्रारम्भ में बहुत कम आती है। परन्तु संस्कृत में जैसे हमने अभी देखा है, यह सब कुछ सम्भव है। - संस्कृत में 'विशेषण' तथा 'क्रिया विशेषण' भी उन संज्ञा शब्दों वा क्रियापदों के पहले व पीछे तथा मध्य में प्रयुक्त हो सकते हैं जिन्हें वे विशिष्ट करते हैं। क्रियापद को विशेषण और विशेष्य के बीच में रखकर हम उपर्युक्त वाक्य को इस प्रकार पढ़ सकते हैं-नृणां श्रेष्ठो रामो धर्मज्ञां सर्वयोषिद्गुणालङ्कृतां परिणिनाय सीताम् / इसी प्रकार क्रियाविशेषण का भी प्रयोग हो सकता है। जैसे-"अद्याहं गृहं गमिष्यामि", या-"अहं गृहमद्य गमिष्यामि" / परन्तु यह नियम प्रायः सर्वगामी होता हुप्रा भी कुछ एक स्थलों में व्यभिचरित हो जाता है। वहाँ क्रमविशेष का ही व्यवहार देखा जाता है / कथा का प्रारम्भ 'अस्ति' या 'मासीत्' क्रिया से होता है, जैसे-अस्त्ययोध्यायां चूडामणि म क्षत्रियः / षष्ठयन्त विशेषण का प्रयोग संज्ञाशब्दों से ठीक पहले (अव्यवहितपूर्व) होना चाहिये / अन्य विशेषण समानाधिकरण अथवा व्यधिकरण उसके बाद में प्रा सकते हैं। उदाहरणार्थ-सर्वगुणसम्पन्नस्तस्य सुतः कस्य स्पृहां न जनयति / इस वाक्य में 'सर्वगुणसम्पन्नः' 'तस्य' का स्थान नहीं ले सकता। 'कक्ष्या प्रकोष्ठे हादेः काञ्च्यां मध्येभबन्धने' (अमरकोषः)। यहां 'मध्येभबन्धने' समांस इस क्रम का समर्थक है / पहले षष्ठ्यन्त 'इभ' का बन्धन के साप समास होता हैइभस्य बन्धनम् इभवन्धनम्, फिर मध्ये (विशेषण) का 'इभबन्धनम्' के साथ समास होता है-'मध्ये इभबन्धनम् मध्येभबन्धनम् / ' समानाधिकरण विशेषण के लिए अमर के 'स्याद्भाण्डमश्वाभरणेऽमत्रे मलवरिपग्धने' इस वचन में 'मलवणिग्धने' सुन्दर उदाहरण है। इसका विग्रह भी प्रकृत विषय की यथेष्ट समर्थना करता है-वपिजो धनं वरिपग्धनम्, मूलं च तद् वरिपग्धनं चेति मूलवणिग्धनम्, तस्मिन् / ___इसी प्रकार मालविकाग्निमित्र का 'सर्वान्तःपुरवनिताव्यापारप्रतिनिवृत्तहृदयस्य'-यह प्रयोग भी उक्त क्रम का समर्थक है। हिन्दी का क्रम 'अन्तःपुर की सारी स्त्रियों में प्रासक्ति से हटे हुए चित्तवाले का'-संस्कृत से विपरीत
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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