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________________ है। सार्वनामिक विशेषण और षष्ठ यन्त विशेषणों में षष्ठ यन्त विशेषणों का ही विशेष्य से अव्यवहित पूर्व स्थान है--सर्वैर्योषितां गुणरलङ्कृता। यही निर्दोष क्रम है, इसमें समास रचना भी ज्ञापक है--सर्वयोषिद्गुणालङ्कृता। 'योषित्सर्वगुणालङ्कृता' नहीं कह सकते / अर्थात् षष्टीसमास पहले होता है और कर्मधारय पीछे / जब सार्वनामिक और गुणवाचक दो समानाधिकरण विशेषण हों तो सार्वनामिक का स्थान पहला होता है और बाद में दूसरे का-चारूणि सर्वाण्यङ्गानि रमण्याः / समास से यहाँ भी इष्टक्रम का यथेष्ट समर्थन होता है...'चारुसर्वाङ्गी'। 'सर्वचार्वङ्गी' नहीं कह सकते / समानाधिकरण होने पर भी सार्वनामिक विशेषण ही विशेष्य से अव्यवहितपूर्व रखा जाता है। 'परमः स्वो धर्मोऽस्य' इस विग्रह में 'परमस्वधर्मः' ऐसा समास होता है। 'स्वपरमधर्म:'--- नहीं कह सकते / 'परमस्वधर्मः' त्रिपदबहुव्रीहि समास है / __ कई वाक्यों में लौकिक वाक्य के अनुसार शब्दों का क्रम निश्चित सा प्रतीत होता है। जैसे---'अद्य सप्त वासरास्तस्येतो गतस्य' / यहाँ वाक्य का प्रारम्भ 'प्रद्य' शब्द से होता है / 'प्रद्य' के बाद व्यतीत हुए समय को सूचित करने वाले शब्द हैं, और इन शब्दों के बाद पुनः षष्ठ्यन्त विशेष्य, निपात, तथा पष्ठ्यन्त विशेषण का प्रयोग किया गया है। इस प्रान्त की भाषा में इस वाक्य से मिलते जुलते शब्दों का क्रम ठीक इसी प्रकार का ही है / ___इसी प्रान्त में कई शताब्दियों तक संस्कृत बोलचाल की भाषा थी। यहीं से भारत के अन्य विभागों में संस्कृत का क्रमिक संचार हुआ। इसी लिए वाक्यों की समानता का एक विशेष महत्त्व है। यह समानता ऊपर निर्दिष्ट किये गये क्रम विशेष का समर्थन करती है। इसी प्रकार 'तस्य सहस्र रजतमुद्राः सन्ति' इस वाक्य के स्थान मे 'सहस्र रजतमुद्रास्तस्य सन्ति' अथवा---'सहस्र रजतमुद्राः सन्ति तस्य' इस प्रकार का न्यास व्यवहारानुकूल नहीं। “एषाऽऽयाति ते माता शिशो' के स्थान पर--'शिशो माता त एषाऽऽयाति' ऐसा कहने का प्रकार नहीं है। ___इसके अतिरिक्त कुछ शब्द ऐसे हैं जो वाक्य के और श्लोक-पाद के प्रारम्भ में प्रयुक्त नहीं किये जा सकते / इस प्रकार के कुछ एक निम्नस्थ अव्यय और अनव्यय शब्द उदाहरण रूप से दिये जाते हैं, जैसे- च, चेत्, तु, पुनर, इति, खलु, नाम तथा युष्मद् और अस्मद् के 'त्वा, मा' आदि रूप / 'च' संयोजक + काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति का "न पादादो खल्वादयः"---यह सूत्र भी हमारे कथन के अनुकूल है।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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