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________________ ओं नमः परमात्मने / नमो भगवते पाणिनये / नमः पूर्वेभ्यः पथिकृद्भयः / नमः शिष्टेभ्यः / विषय प्रवेश संस्कृत वाक्य की रचना-प्रायः संस्कृत वाक्य में पदों का क्रम आधुनिक भारतीय भाषाओं के समान ही होता है। अर्थात्-सबसे पहले कर्ता फिर कर्म और बाद में क्रिया / उदाहरणार्थ-रामः सीतां परिणिनाय (राम ने सीता से विवाह किया) / विशेषण उन संज्ञा शब्दों के पूर्व आते हैं, जिनके अर्थ को वे अवच्छिन्न करते हैं (सीमित करते हैं) और क्रियाविशेषण उन क्रियापदों के पहले प्रयुक्त होते हैं जिनके अर्थ को वे विशिष्ट करते हैं (जिनके अर्थ में वे प्रकारादि विशेष अर्थ जोड़ देते हैं। उपर्यक्त वाक्य को विशेषणों के साथ मिलाकर इस प्रकार पढ़ा जा सकता है-नृणां श्रेष्टो रामो धर्मज्ञां सर्वयोषिद्गुणालङ्कृतां सीतां परिणिनाय / क्रियाविशेषण सहित यही वाक्य इस प्रकार बन जाता है-नृणां श्रेष्ठो रामो धर्मज्ञां सर्वयोषिद्गुणालङ्कृतां सीतां विधिना (विधानतः) परिसिनाय / संस्कृत भाषा के शब्द न केवल सामान्यतः परन्तु विशेषतः विकृत रूप में प्रयुक्त होते हैं / यहाँ वाक्य रचना करते हुए पदों को किसी भी क्रम से रक्खा जा सकता है / वाक्यार्थ में कुछ भी भेद नहीं होता और न ही बोध में विलम्ब होता है / प्राहर पात्रम्, पात्रमाहर / पात्र लामो / दोनों वाक्यों का एक ही अर्थ है / एवं हम ऊपर वाले वाक्य को-रामः सीतां परिणिनाय, सीतां परिणिनाय रामः, सीतां रामः परिणिनाय, परिणिनाय सीतां रामः, परिणिनाय रामः सीताम्, सीतां परिणिनाय रामः-किसी भी ढंग से कह सकते हैं। इन सब वाक्यों में चाहे शब्दों का कोई भी क्रम क्यों न हो 'राम' कर्ता 'सीता' कर्म और 'परिणिनाय' क्रिया ही रहते हैं। ये शब्द सुप् विभक्ति व तिङ् विभक्ति के कारण झटपट पहचाने जा सकते हैं / यह क्रम अंग्रेजी आदि अविकारी भाषाओं में नहीं पाया जाता। राम ने रावण को मारा, इस वाक्य के अंग्रेजी अनुवाद में पदों का न्यास क्रम विशेष से करना होगा। प्रथम 'राम', + यह रूप में क्रियाविशेषण न होता हुआ भी अर्थ की दृष्टि से क्रियाविशेषण ही है।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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