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________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य 37 चकवर्ती इसी वंश के थे। इस वंश के मुनि विष्णुकुमार ने वात्सल्यधर्म के आदर्श की स्थापना की। कौरव एंव पाण्डव इसी वंश के थे। हरिवंश ह 'वंश से स्पष्ट होता है कि इस वंश की उत्पत्ति राजा हरि द्वारा तीर्थकर मुनिसुव्रत नाच के तीर्थकाल में हुयी। विद्याधर वंश के एक राजा के इस देश में आ जाने एंव उसके पुत्र के पराकमी होने के उल्लेख मिलते है / आदिपुराण में आदि तीर्थकर ऋषभ द्वारा इस वंश की उत्पत्ति बतायी गयी हैं एंव राजा हरिकान्त को मूलनायक बताया गया है। बाद में इसी हरिवंश मे राजायदु हुआ एंव उसी से यादव वंश का प्रारम्भ हुआ। यादववंश में जनतन्त्रात्मक शासन प्रणाली थी। काश्यप वंश इस वंश को उग्रवंश भी कहते हैं। काश्यप इस उग्रवंश का मूलनायक था। तेइसवें तीर्थकंर पार्श्वनाथ उग्रवंश के थे। नागवंशीय राजाओं को इसी वंश से सम्बन्धित माना जाता है। इस नागवंश के समान ही "उइगुरस (UTHURS) जाति के लोग म य-एशिया में रहते थे२ | मध्यएशिया के लोग काश्यप को अपना पूर्वज मानते हैं | नागवंश सती सुलोचना के पिता अकम्पन इस नागवंश के मूलनायक थे। नागवंश ज्ञातकुल नाम से भी प्रसिद्ध रहा। अन्तिम तीर्थकर महावीर इसी वंश के हुए थे। विद्याधर वंश जैनाचार्यो एंव साहित्यकारों का मत है कि आदि तीर्थकर ऋषभ देव द्वारा अपने पुत्रों में जब राज्य का विभाजन कर दिया गया तब कच्छ-सुकच्छ के पुत्र नमि, विनमि को कोई शासनाधिकार प्राप्त नहीं हुआ उस समय ऋषभदेव से याचना करने पर नागराज धरेणन्द्र द्वारा विजयार्द्ध पर्वत जिसकी उत्तर एंव दक्षिण दो श्रेणियाँ थी का राज्य नमि व विनमि को दे दिया गया। . जमीन से दस योजन ऊपर दक्षिणी भाग में नमि ने 50 नगर एंव वैताढय के उत्तर विभाग में विनमि ने 60 नगर बसाये५ / नमि एंव विनमि ने वहॉ पर गॉव, कस्बे एंव नगर भी बनाये और उनका नामकरण विभिन्न जनपदों से आये लोगों के जनपद के अनुरुप किया। नमि एंव विनमि धर्म अर्थ काम एंव मोक्ष को कोई हानि न पहुंचे, इस तरह शासन करते थे। धरणेन्द्र द्वारा प्राप्त विद्यावल से शासन करते हुए जैनमन्दिर बनवाये, वे जैनधर्म के उपासक थे। धरणेन्द्र ने उनके शासन में कठोर नियम बनाये एंव रत्नों की दीवार में प्रशस्ति की तरह खुदवा दिये थे८ / विद्याओं
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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