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________________ जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास एंव अरिहनाथ को तिलक एंव सहकार वृक्ष की छाया में, अशों वृक्ष के नीचे मल्लिनाथ जिन ने एंव चम्पकवृक्ष के नीचे मुनिसुव्रत ने केवल ज्ञान प्राप्त किया ! ये तीर्थकंर धर्म सभा (समवशरण) का आयोजन करते थे। जिसमें 12 सभाएं होती थी उनमें तीर्थकंर के दायें ओर से लेकर - 1, मुनि 2, कल्पवासिनी देवियाँ 3. आर्यिकाएं 4, ज्योतिषी देवों की देवियाँ 5, व्यन्तर देवों की देवियाँ 6, भवनवासी देवों की देवियाँ 7, भवनवासी देवी 8, व्यन्तर देव 8, ज्योतिषदेव 10, कल्पवासी देव 11. मनुष्य एंव तिर्यचं 12, गण क्रमशः पृथक पृथक स्थानों पर बैठते थे५ | समवसरण में तीर्थकरों के धर्मोपदेश की भाषा समस्त मनुष्यों की भाषा थी जो शंका एंव विरोध को समाप्त करती हुयी सत्यज्ञान को कराती थी६ | स्याद्वाद नीति द्वारा अन्य भेदात्मक मतों का खण्डन करती थी | उनकी भाषा अर्द्धमागधी थी। ये सभी तीर्थकरों ने मोक्ष प्राप्त किया था। ___ 12 चकवर्तियों द्वारा छहों खण्डों युक्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त की गयी थी उन्होंने अहिंसा संस्कृति का प्रसार किया था। इन त्रेषठशलाका पुरुषों के चरित्र निरुपण द्वारा जैनधर्म में मान्य कर्मविपाक, पूर्वभव, मनुष्य, तिर्यंचं, देव, नरक गतियों का वर्णन, धर्मोपदेश द्वारा धर्माचरण की ओर प्रवृत्त होना आदि के उपदेश दिये गये हैं। सांस्कृतिक दृष्टि से विवाह, जन्म महोत्सव एंव रीतिरिवाज, परम्पराओं का वर्णन एंव राजनैतिक दृष्टि से तत्कालीन राज्य व्यवस्था का वर्णन किया गया है। राजवंश जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य तत्कालीन राजवंशों का भी उल्लेख करना था क्योंकि इनमें वेशठशलाका पुरुषों ने जन्म लिया है। इक्ष्वाकुवंश इक्ष्वाकुवंश आदि तीर्थकर ऋषभनाथ का मूल राजवंश था | "इथून् आकयति कथयतीति इक्ष्वाकु आदि से इसका नाम इक्ष्वाकुवंश पड़ा। इन इक्ष्वाकुवंशी राजाओं के शिलालेख भी प्राप्त होते हैं। विदेशी "किश" राजवंशावली में प्राप्त इक्ष्वाकु के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि इस वंश के महापुरुषों ने विदेशों में राज्यस्थापना की थी। कालान्तर में इसी वंश से चन्द्र एंव सूर्य वंश की उत्पत्ति हुर्थी कुरुवंश चक्रवर्ती भरत के सेनापति जयसेन इस वंश के अधीश्वर थे, वे कुरुक्षेत्र के शासक थे उनकी राजधानी हस्तिनापुर थी। शान्ति, कुन्थु एंव अरि तीर्थकंर एव
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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