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________________ 38 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास के अधिकारी होने के कारण नमि एंव विनमि के वंशज विद्याधर कहलाऐं / मुनिसुव्रतनाथ तीर्थकंर के काल तक विद्याधर वंश के शासक वैताढय पर्वत तक शासन स्थापित कर चुके थे। इसी समय रथूनपुर (रत्नपुर) के राजा सहस्त्रार के पुत्र इन्द्र के पराक्रमी होने की जानकारी होती है उसने विद्याधर वंशीय राजाओं को अपने आधीन करके वहॉ देवलोक के समान ही व्यवस्था स्थापित की | उसने विद्याधरों में से ही लोकपाल, यक्ष, असुर, नाग, किन्नर इत्यादि वर्ग-नियम करके उनके नाम से विभिन्न नगर स्थापित किये। पाताल निवासी विद्याधर नाग, सुपर्ण, गरुड़ विद्युत आदि नाम से प्रसिद्ध हुए। इस तरह विद्याधर वंश के अनेक भेद हो गयें। ये विद्याधर वंशीय व्यक्ति आर्य क्षत्रिय मानव थे उन्हें साधारण मानव जाति से अधिक विद्याएँ. प्राप्त थी। विद्याधर वंश की प्रत्येक जाति द्वारा प्रत्येक विद्यापति देवता की स्थापना की गर्दी जैनपुराणों में वर्णित इस विद्याधर वंश की उत्पत्ति की पुष्टि जैनेतर साहित्य एंव पुरातात्विक साक्ष्यों से भी होती है। उत्खनन में प्राप्त आयागपट्टों पर नाग, सुपर्ण, गरुड़प की मनुष्याकृतियाँ उत्कीर्ण हैं एंव एक आयागपट्ट पर एक नाग कन्या एंव अन्य पुरुष किसी श्रमण की भक्ति करते हुए दिखलायें गयें हैं७२ / ये नागवंशी विद्याधरों की आकृतियाँ हैं। कहीं कहीं पर विद्याधर भी उत्कीर्ण प्राप्त होते हैं / एक शिलापट्ट पर शिवजी के ताण्डवनृत्य में बाजे बजाते हुए विद्याधरों को उत्कीर्ण किया गया है जो संगीत में उनकी पटुता एंव विद्याधरों की गन्धर्वश्रेणी को स्पष्ट करते हैं। अभिलेखीय दृष्टि से खारवेल के हाथी गुफा शिलालेख में विद्याधरों का उल्लेख प्राप्त होता है | जिससे दूसरी शताब्दी ई० में विद्याधर वंश के अस्तित्व की जानकारी होती है। ये विद्याधर वंश के लोग नभचर थे अपने विद्यावल से आकाश में भी उड़ सकते थे। ये खेचर भी कहलाते थे७६ | विद्याओं के भेद से इनकी 16 जातियाँ हुयी थी। अन्य राजवंशों के व्यक्ति भूमि गोचरी थे अतएंव ये विद्याधर भूमिगोचरी व्यक्तियों को अपने से हीन मानते थे एंव इसीकारण वैवाहिक सम्बन्ध नहीं करते थे। बाद में यह भेद समाप्त हो गया। कुछ विद्याधर क्षत्रियों के भारत आकर रहने एंव राजाओं से घुल मिल जाने के उल्लेख मिलते हैं / करकंडुचरिउ से दक्षिण विजयार्द्ध के नील एंव महानील नामक दो विद्याधर भाइयों द्वारा तेरापुर पर राज्य स्थापित करके जैनमुनि के उपदेश से प्रभावित होकर गुफा मन्दिर बनवाने के उल्लेख मिलते हैं जिसमें कि अमितवेग एंव सुवेग नामक विद्याधरों द्वारा मालावार प्रदेश के पूर्वी पर्वत से रावण के वंशजों द्वारा प्रतिष्ठापित भ०पार्श्वनाथ की मूर्ति को लाकर स्थापित किया था |
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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