SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास रुप देना था इसी कारण आगम साहित्य में तीर्थकरों के उपदेशों को सन्निहित किया गया एंव विभिन्न दृष्टान्तों द्वारा आचार विषयक सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया गया है। आगम साहित्य में मुनि आचारों का अधिक वर्णन किया गया है। जैन श्रमणों के आचार-विचार, व्रत संयम, तप, त्याग, गमनागमन, रोग निवारण, विद्यामंत्र, उपसर्ग, दुर्भिक्ष, उपवास, प्रायश्चित् आदि का वर्णन करने वाली परम्पराओं जनश्रुतियों, लोककथाओं एंव धर्मोपदेश की पद्धतियों का वर्णन प्राप्त होता हैं। कथा साहित्य जैन साहित्य का इस दृष्टि से विशेष अंग रहा है। जैन कथाकारों का उद्देश्य अपने धर्म के मूलभूत सिद्धान्तों का प्रचार करना था इसके लिए उन्होंने कथा को ही अपनाया। प्रायः सभी लोक कथाओं एंव अवान्तर कथाओं में जैन सिद्धान्तों का प्रतिपादन, सत्कर्म, प्रवृत्ति, असत्कर्म निवृत्ति, संयम तप त्याग, वैराग्य आदि की महिमा एंव कर्मसिद्धान्त की प्रवलता पर बल रहता है। हरिभद्र सूरि की धर्मकथा “समराइच्च-कहा की मूलकथा के अन्तर्गत अनेक अर्न्तकथाओं में निर्वेद, वैराग्य, संसार की असारता, कर्मों की विचित्र परिणति, मन की विचित्रता, लोभ का परिणाम, माया, मोह, श्रमणत्व की मुख्यता आदि विषय प्रति पादित किये गये हैं। इसी तरह उद्योतनसूरि की कुवलयमाला में कुवलयचन्द्र की कथा के माध्यम से संसार का स्वरुप, चार गतियाँ, जातिस्मरण, पूर्वकृत कर्म, चार कषाय, पाप का पश्चाताप, धनतृष्णा, जिनमार्ग की दुर्लभता, प्रतिमापूजन, पंचनमस्कार मंत्र, तीर्थकर धर्म, संसार चक्र, मोक्ष का शाश्वत सुख, सम्यकत्व व्रत, द्वादश भावनाएं, लेश्या, एंव वीतराग की भक्ति का वर्णन करके जनसाधारण तक जैनधर्म के उपदेशों को पहुंचाया गया है। इसके साथ ही जैन कथाकारों ने जैनधर्म के त्रेशठशलाका पुरुषों एंव उत्तम पुरुषों के चरित्र एंव उनके जीवन की घटित घटनाओं के माध्यम से दान, तप, शील एंव सद्भाव स्वरुप धर्म का विकास किया। जैन कथाकारों के अनुसार ये मानव जीवन को कल्याणकारी सुखी, संस्कारी एंव सत्कर्मी बनाने वाले हैं। कथा साहित्य से ज्ञात होता है कि जैनधर्म की मान्यता है कि कर्मो का फल अवश्य मिलता है सत्कर्मों का शुभफल एंव दुष्कर्मों का अशुभफल प्राप्त होता है जैन कथाकारों ने धर्मोपदेश को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कोध, मान, माया लोभ एंव मोह इन पांचों को क्रमशः चन्डसोम् मानभट, मायादित्य, लोभदेव एंव मोहदत्व का पात्र रुप में चित्रित किया है एंव उनके चरित्र चित्रण से पंच महाव्रतों को स्पष्ट किया है। जैन कथाकारों ने श्रृंगारयुक्त प्रेमाख्यानों को भी माध्यम बनाया। हरिभद्रसूरि ने प्रेमाख्यानों को धर्म एंव अर्थ की सिद्धि का स्त्रोत माना है व समराइच्चकहा में समरादित्य अशोक, कामांकुर एंव ललितांग नामक मित्रों के साथ काम शास्त्र की चर्चा करता है। इस तरह जैन कथाकारों का उददेश्य जनसाधारण में धर्म के शाश्वत एंव शरीर व धन के नश्वर रुप को स्पष्ट करके धर्मानुसार आचरण करने की ओर प्रेरित करना था।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy