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________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य __ जैन इतिहासकारों ने पुराण एंव चरितकाव्यों में त्रेशठशलाका पुरुषों एंव तत्कालीन प्रसिद्ध महापुरुषों का चरित्र वर्णन किया है। ये ग्रन्थ धर्म के आवरण से आवृत्त है उन्होंने धार्मिक एंव नैतिक भावनाओं को जनसाधारण तक पहुँचाया है उनका उद्देश्य आध्यात्मिक एंव नैतिकता का वातावरण समाज में उत्पन्न करना था। अतएव पुराणों में महापुरुषों की जीवनियों उनके अलौकिक रुपों, एंव धार्मिक कार्यो का वर्णन किया गया है। पुराणों एंव चरितकाव्यों में शलाका पुरुषों के पूर्वभवों का वर्णन करके कर्म एंव पूर्नजन्म के सिद्धान्त पर बल दिया है। कर्म को अतिशक्तिशाली तत्व के रुप में वर्णित कर जनसाधारण को ईश्वर, कर्तृत्व, ईश्वर प्रेरणा जैसे परम्परागत अन्धविश्वास से मुक्त करके आत्मा की स्वतन्त्रता का, स्वपुरुषार्थ का, सर्वशक्तिसम्पन्नता का एंव आत्मा की परिपूर्णता का ज्ञान कराया है। पुराणों में कर्मो को ही मानव सुख दुःख एंव हानिलाभ के कारण बतलाये गये हैं। पुनर्जन्म मृत्यु मोक्ष आदि सभी घटनाओं को कर्मसिद्धान्त के आधार पर प्रतिपादित किया है। जैन इतिहास लेखकों ने चरितकाव्यों में आचार पर विशेष बल देते हुए मुनि आचार-पंच महाव्रत, गुप्ति, समिति, समयक्त्रयरत्न, तप आदि एंव श्रावक आचार-पंचअणुव्रत, गुणव्रत शिक्षाव्रत आदि को स्पष्ट किया है। सदाचार के द्वारा नवीन कर्मो का क्षय एंव इसके अंगभूत तप के द्वारा पूर्व संचित कर्मो का क्षय करता है। इस तरह जैन इतिहास लेखकों ने कर्म प्रपंच से बचकर आत्मकल्याण को प्राप्त करने का मार्ग बताया। स्यादवाद् के महनीय सिद्धान्त का साहित्य में उल्लेखकर जैन धर्म के समन्वयात्मक रुप एंव अतिशय व्यापक दृष्टि की पुष्टि की। जैन मतानुसार प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक होती है। किसी भी वस्तु को एक दृष्टिकोण से पूर्ण नहीं कहा जा सकता उसे पूर्ण बतलाने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों का आश्रय लिया जाता है क्योंकि समाज में विचार भिन्नता आवश्यक रुप से होती है। किसी भी व्यक्ति के विचार पूर्णतः सत्य नहीं हो सकते आंशिक सत्य विचारों में रहता है। स्यादवाद इसी मत भिन्नता में समन्वय उत्पन्न कर सत्य का विश्लेषण करता है। जैन इतिहास लेखकों ने जैन दर्शन को स्पष्ट करने के लिए चरितकाव्यों में आत्मा के विभिन्न रुपों पर्यायों एंव गुणों का विवेचन किया है। शुद्ध आत्मा को परमात्मा कहा गया है पुण्य पाप बन्ध मोक्ष की व्यवस्था विस्तार से वर्णित की है। मोक्षमार्ग का निरुपण करते हुए सम्यग्दर्शन, सम्यक् ज्ञान एंव सम्यक् चरित्र के समुदाय को अभीष्ट प्राप्ति का मार्ग कहा है। चरितकाव्यों में जैन दर्शन के जीव, अजीव, आस्त्रव, बंध, निर्जरा एंव मोक्ष इन सात तत्वों का निरुपण किया गया है। मूलतः दो ही तत्व है जीव एंव अजीव / अनन्त चतुष्टयरुप आत्मा कषाय
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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