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________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य 27 थे जो बाद में क्षत्रिय बना दिये गये। जैन एंव बौद्ध धर्म के प्रभावस्वरुप जातिगत पेशे शिथिल हो गये। उत्तरभारत में कृषि की अपेक्षा व्यापार करना अच्छा समझा जाने लगा इसी कारण वैश्य वर्ग कृषिकर्म को छोड़कर व्यापार की और अधिक अग्रसर होने लगे। इसी तरह जैनधर्म की अहिंसात्मक प्रवृत्ति से प्रभावित होकर क्षत्रिय वर्ग ने शस्त्रोपजीवी जीविका छोड़कर व्यापारिक वृत्ति अपना ली। इस व्यापारी वर्ग द्वारा जैनधर्म एंव साहित्य को प्रश्रय मिला। परिणामतः जैनधर्म का प्रसार एंव प्रचार विदेशों में हुआ। अनेक जैनधर्मानुयायी विभिन्न राज्यवंशों के महामात्य, दण्डनायक, कोषाध्यक्ष आदि जैसे पदों पर थे। वैश्य वर्ग को राजकीय प्रतिष्ठा अधिक प्राप्त होने के कारण उनकी रुचि साहित्यिक निर्माण की ओर अधिक थी। जैन गृहस्थों द्वारा अनेक ग्रंथों की रचना की गयी। अपभ्रंश पउमचरिय के रचयिता स्वयम्भू एंव गद्यकाव्य तिलकमंजरी के रचयिता धनपाल आदि जैन गृहस्थ थे। यह काल संस्कृत साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता था। जैन धर्म यद्यपि त्याग एंव वैराग्य पर प्रधानतः बल देता रहा है उनके उपदेश जीवन की सत्यता के निकट होते थे। ऐसी स्थिति में सत्य एंव कटु उपदेशों को सरल एंव सहजगम्य बनाने के लिए अन्य भाषाओं में भी रचनाऐं की थी। तत्कालीन इन परिस्थितियों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों एंव जैनइतिहास लेखकों के अपने मूलभूत उद्देश्य थे जिसके कारण प्रचुर मात्रा में विविध विधाओं में साहित्य सृजन किया गया। जैनधर्म के सिद्धान्तों को स्थायी एंव व्यापक रुप देना। जैन इतिहास लेखकों का मूल उद्देश्य अपने धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार एंव प्रसार करना था। भगवान महावीर के काल तक किसी भी प्रकार का जैन साहित्य नहीं रचा गया। जैन सिद्धान्त मौखिक परम्परा से चले आ रहे थे। धीरे-धीरे इनके लुप्त होने पर भगवान महावीर के पश्चात् उनके गणधरों एवं तीर्थकरों द्वारा विभिन्न समयों में दिये गये उपदेशों का संकलन बारह अंग एंव चौदह पूर्वो में आगम साहित्य लिखा गया। किन्तु ये मूल आगम भी समय के प्रभाव से यथार्थ रुप में प्राप्त नहीं होते। भगवान महावीर के निर्वाण के 683 वर्ष उपरान्त सर्वप्रथम जैन साहित्य लिखा गया जिसका मूल उद्देश्य धर्म एंव दर्शन के सिद्धान्तों को स्थायी रुप देना था। इसी कारण कभी उन्होंने कथाग्रन्थ लिखे है तो कभी पुराण एंव चरितकाव्य / इन सभी ने जैनधर्म के जटिल सिद्धान्तों एंव मुनिधर्म-पंच महाव्रत, दान, शील, तप, पूजा, स्वाध्याय, त्रयरत्न समाधि-मरण आदि के वर्णनों द्वारा जैनधर्म को अत्यन्त व्यापक बनाया। जैन आगम साहित्य का मूल उद्देश्य जैन धर्म के सिद्धान्तों को स्थायी
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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