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________________ जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर हिन्दू प्रभाव 213 माध्यम के बारे में योगदर्शन का कहना है कि स्थूल सांसारिक परिग्रहों का त्याग तो योगी अपने अभ्यास के प्रथम चरण में त्याग देता है लेकिन अविद्या, राग क्लेश एंव अपनी देह में ममत्व भाव आदि इन परिग्रहों को त्याग देने पर योगी यथार्थ ज्ञान को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। अपरिग्रह योगी तीनों कालों में अपने स्वरुप का ज्ञाता रहता है। इस सर्वज्ञता को महावीर स्वामी ने प्राप्त किया था। ___ महावीर का यह पंच महाव्रत जो कि उपनिषद् विद्या से पूर्णरुपेण प्रभावित है अत्यन्त कठिन है। इसी कारण आत्म ज्ञान को रहस्यविद्या अथवा उपनिषद् विद्या कहा गया है | महावीर स्वामी अन्तर्मुखी व्यक्ति थे उन्होंने अपनी इन्द्रियों को बाह्यवृत्तियों से पराङ्मुख कर लिया था इसी कारण वे औपनिषदिक योगी थे। ये धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करने वाले, मोक्षमार्ग के उपदेशक एंव तीर्थकंर कहे गये हैं।०२। जैन धर्म के दार्शनिक एंव उपदेशक मतों पर भी हिन्दू ग्रन्थों का स्पष्ट प्रभाव है। स्याद्धाद जैनधर्म में विचार का मूल-स्याद्धाद है लेकिन साख्य में इस प्रकार के विचारों को स्वीकृत नहीं किया गया है लेकिन विचारशैली के आधार पर जो परिणाम दृष्टिगत होते हैं उनसे स्पष्ट है कि जैन स्याद्वार पर गख्य के विचारों का स्पष्ट प्रभाव है। जैनधर्म के विचार जिस दृष्टि क लेकर चलते हैं उनके अनुसार समस्त विश्व के मूलभूत तत्व दो भागों में एक जीव तत्व दूसरे अजीव या जड़ तत्व में विभक्त हैं। सांख्य में भी मूलभूत तत्वों को दो भागों में - “पुरुष एंव "प्रकृति में विभाजित किया गया है। पुरुष चेतन तत्व है एंव प्रकृति जड़ तत्व / चेतन एंव जड़ इन दो स्वतन्त्र तत्वों को स्वीकार करने के कारण ही सांख्य वैदिक दर्शन को द्वैतवादी समझा जाता है / इस प्रकार मानव एंव विश्व की समस्याओं को सुलझाने के लिए जैनधर्म के द्वैतवादी दर्शन स्याद्वांद पर सांख्य दर्शन के द्वैतवाद का प्रभाव साम्यवाद हिन्दू संस्कृति के मूलतत्व अध्यात्मवाद, अहिंसावाद, साम्यवाद एंव कर्मवाद का प्रभाव जैन ऐतिहासिक तथ्यों पर स्पष्टतः दिखायी देता है। जैन संस्कृति में व्यक्तिपूजा की अपेक्षा त्याग एंव तपस्या जैसे गुणों पर बल दिया जाता है। णमोंकार मंत्र में उन समस्त तीर्थकरों को नमस्कार किया गया है जो निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं “अरहंत शरणम् प्रवज्जामि” में उन्हीं आत्माओं की शरण के लिए प्रार्थना की गयी.
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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