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________________ 214 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास है जो जैनधर्म के मान्य अनन्त ज्ञान, अनन्तसुख, एंव अनन्तवीर्य गुणों से युक्त है। समत्व का सिद्धान्त जो वैदिक ग्रन्थों, उपनिषदों, स्मृतियों में सभी वर्णो, धर्मो एंव प्राणी मात्र के लिए पाया जाता है वह जैन धर्म की आत्मा है। कर्मवाद हिन्दू कर्म के सिद्धान्त को जैन संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। कर्म के अनुसार ही उसे फल मिलता है। ईश्वर या अन्य कोई बाह्यसत्ता इस कारण कार्य के नियम पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। जैन मान्यता के अनुसार कर्म एक स्वतन्त्र द्रव्य है यार जीव के कर्मो से आकृष्ट होकर आत्म परिणामों की तीव्रता एवं मन्दता के अनुर" र वन्ध को प्राप्त होता है। सुख दुख, उत्थान, पतन, मनुष्य देव, तिर्यच, नरक आदि सभी गति कर्मो पर आधारित है। जैन उपासना के तीन आयाम एंव हिन्दूधर्म जैन धर्म में उपासना के तीन आयाम दृष्टिगत होते हैं ये भी हिन्दू धर्म से पूर्णरुपेण प्रभावित है। आत्मज्ञान ___ पहले आयाम में आत्मानुभूत उपासना है जिसमें सम्यक् चारित्र को विशेष बल देते हुए मोक्ष प्राप्ति ही मुख्य उद्देश्य था / उपनिषदों, सांख्ययोग एंव बौद्ध सभी में ब्रह्मज्ञान आत्म ज्ञान एंव शुद्धज्ञान की साधना का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति कहा गया है आत्मविवेक एंव आत्म शुद्धि को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है। तन्त्र-मन्त्र हिन्दू धर्म में तन्त्रमन्त्रों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। जैन धर्म में भी उपासना का द्वितीय आयाम-तन्त्र मन्त्र के द्वारा अनेक प्रकार की आध्यात्मिक शक्तियाँ उपलब्ध करना था लेकिन ये आयाम अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण था। भगवान महावीर द्वारा एक तापस द्वारा मुखपुत्र गौशालक पर छोड़ी गयी तेजोलेश्या को शान्त करने के लिए शीतोलेश्या का प्रयोग करने की जानकारी मिलती है। महावीर ने इस प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए साधना करने का उपदेश किसी को नहीं दिया। समता भाव धारण करते हुए कर्मक्षय करने के 12 प्रकार के अन्तरंग एंव बहिरंग तप करने के उपदेश दिये। फिर भी प्राप्त जैन अवशेषों पर यक्ष यक्षिणियों एंव यन्त्र बने हुए हैं अतएव स्पष्ट है कि जैन तन्त्र मन्त्र का प्रयोग कुछ जैनाचार्य अवश्य करते रहे और ये हिन्दू धर्म का प्रभाव था।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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