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________________ 164 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास सम्बन्धों को बनाये रखना था। समाज में अनुलोम एंव अन्तरर्जातीय विवाह प्रचलित थे। लेखों में प्राप्त पट्टराज्ञी, पट्टमहिषी, ज्येष्ठपत्नी आदि शब्द बहुपत्नी विवाह की ओर संकेत करते हैं ! राजघरानों की तरह साधारण जनता में भी बहुपत्नी विवाह प्रचलित थे। सती प्रथा लेखों में प्राप्त उल्लेखों से सती प्रथा प्रचलित होने की जानकारी होती है। कल्चुरि नरेश गांगेयदेव की सौ स्त्रियों द्वारा आग में जलकर मरने के उल्लेख प्राप्त होते हैं | जोधपुर के एक लेख से राजपूत रानी के सती होने की जानकारी होती है | होय्यसल राजवंश में अपने स्वामी की मृत्यु पर खेद प्रकट करने के लिए देहत्याग करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। शिक्षा लेखों में प्राप्त पट्टशाला निर्माण कराने५०, ऋषिवर्ग के आहार विद्यार्थियों के व्यय प्रबन्ध एंव शास्त्रों के लिखे जाने हेतु दान देने के साथ शास्त्र लिखने वालों को राजकीय सम्मान देने एंव गुरु शिष्य परम्परा के उल्लेखों से समाज में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान होने की जानकारी होती है। स्त्री एव पुरुष दोनों ही शिक्षा ग्रहण करते थे। शिक्षा ग्रहण के पश्चात् गुरु-दक्षिणा देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। शिक्षा के लिए वाचनालय खोलने की भी परम्परा रही। आचार्यो के समस्त शास्त्रों में निपुण होने के उल्लेखों से शिक्षा की उच्च स्थिति ज्ञात होती है। स्त्रियों की स्थिति जैन अभिलेखों से समाज में स्त्रियों को पुरुषों के समान ही सभी अधिकार प्राप्त थे। लेखों में प्राप्त “अर्धांगिनी शब्द स्त्रियों की उच्च स्थिति की ओर संकेत करता है / शील, दया, पतिव्रता, स्त्री के महत्वपूर्ण गुण माने जाते५ / स्त्रियों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही राज्यकार्य करने एंव उपाधि धारण करने की जानकारी होती है | स्त्रियाँ युद्ध क्षेत्र में जाती एंव वीरगति को प्राप्त करती थीं / धार्मिक जगत में भी स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समान ही थी स्त्रियों द्वारा शिष्यत्व ग्रहण करने एंव संघों में रहने की जानकारी होती है जो श्राविका कहलाती है। स्त्रियाँ धर्म परायण होती। धार्मिक भावनाओं से प्रभावित होकर जिन मन्दिर, मूर्ति, निषधा निर्माण एंव मन्दिर जीर्णोद्वार के साथ पूजा, प्रबन्ध, ऋषि एंव विद्यार्थियों के आहार एंव शीत से रक्षा करने हेतू भूमिदान देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं | स्त्रियों द्वारा पुराणादि शास्त्र सर्जन कराये जाने की भी जानकारी होती है।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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