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________________ अभिलेख 165 लेखों से जैनधर्म के अन्तर्गत स्त्रियों द्वारा कठोर व्रतों का पालन करते हुए तप एंव केशलुंचन करने एंव समाधिमरण करने की जानकारी होती है६२ / अभिलेखों से प्राप्त साक्ष्य स्त्रियों की उच्च स्थिति के द्योतक माने जा सकते हैं। आर्थिक जैन अभिलेखों का मुख्य उद्देश्य धार्मिक था लेकिन धार्मिक क्रियाओं एंव दानादि के प्रसंगों से तत्कालीन सुदृढ़ आर्थिक स्थिति की जानकारी होती है। लेखों से ज्ञात होता है कि कृषि जीविका का मुख्य साधन थी। जनता अधिकतर गॉवों में रहती। राज्य को कृषि से काफी आय होती थी क्योंकि राजा कृषकों से उपज का छठा भाग कर रुप में लेता था। कृषि योग्य भूमि को पहले जोता जाता था। अभिलेखों से श्रेष्ठियों द्वारा भूमि जोतने के प्रबन्ध करने की जानकारी होती है६३ | भूमि की सिंचाई की ओर राजा का भी ध्यान रहता था लेखों में सिचाई के निमित्त झील नहर कुए एंव तालाब आदि के निर्माण कार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है। खारखेल के हाथी गुंफा अभिलेख से राजधानी तक नहर तैयार कराने की जानकारी होती है। होय्यसल राजा विनयादित्य द्वारा सिंचाई के लिए नहर बनवाने४ एंव चालुक्य राजा मारसिंह द्वारा उत्तरी सिंचाई की रक्षा करने के उल्लेख लेखों में प्राप्त होते हैं६५ | केवल प्रशस्ति से नदी से राजधानी तक राजा द्वारा नहर तैयार कराने की जानकारी होती है ताकि बाग बगीचे की सिंचाई सरल हो जाय सिंचाई के लिए कूप निर्माण के भी उल्लेख मिलते हैं। लेखों में प्राप्त तालाबों के नाम एंव तालाव निर्माण कराने के उल्लेखों से सिंचाई का साधन होने की जानकारी होती है। गंगपेम्माडिदेव द्वारा मन्दिर को दान में प्राप्त भूमि की सिंचाई के लिए तालाब खुदवाने की जानकारी होती है६८ | होय्यसल वंशी राजाओं द्वारा भी कूप एंव तालाब निर्माण कराने के उल्लेख प्राप्त होते हैं | लेखों से ज्ञात होता है कि तालाव से जो फायदा उठाते थे, वे उत्पन्न फसल का, १०वॉ भाग निर्माण कराने वाले को देते थे। जैन अभिलेखों से तत्कालीन खेतों के माप का वर्णन स्थान-स्थान पर मिलता है। जिससे पूर्वमध्यकाल में भूमि नापने की प्रथा की जानकारी होती हैं भूमि को दान देते समय दानकर्ता के लिए क्षेत्र की सीमा तथा उसके माप का स्पष्ट उल्लेख करना नितान्त आवश्यक था जिस भूभाग को दानग्राही ग्रहण करता उसी क्षेत्रफल से “कर* ग्रहण करता था तथा आवश्यकता पड़ने पर बंधक भी रखता / छठी शताब्दी से बारहवी शताब्दी तक के दानपत्रों में माप के दो रुपों का वर्णन प्राप्त होता है। एक रुप में खेतों (भूमि) की लम्बाई, चौड़ाई नापने के साधन का नाम, उल्लिखित है जो लेखों में विभिन्न नाम से उत्कीर्ण है जैसे - निवर्तन, मत्तर, कम्म, गज, हाथ, कुण्डी, पुट्टि, एंव खडडुग आदि। दूसरे रुप में माप भूमि की उपज से
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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