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________________ 71 श्रावक-वर्णनाधिकार मुझे पूजो, अन्यों को पूजोगे तो मैं दंड दूंगा अथवा तुम्हारे कारण भूखा रहूंगा, अथवा (तुम्हारी) निंदा करूंगा तथा स्त्री को साथ लिये फिरता है। भट्टारक नाम तो तीर्थंकर केवली का है तथा दिगम्बर, दिग् का अर्थ दिशा है और अम्बर का अर्थ वस्त्र है / अत: दसों दिशा रूप वस्त्र ही जिसने पहन रखे हैं उसे दिगम्बर कहते हैं, निर्ग्रन्थ तो परिग्रह रहित होता है, अत: बाह्य में तो तिल-तुस मात्र भी परिग्रह न हो तथा अभ्यन्तर चौदह प्रकार के परिग्रह से रहित हो उसे निर्ग्रन्थ कहते हैं। वस्तु का स्वभाव तो अनादिनिधन इसी प्रकार का है, तथा मानते अन्य प्रकार हैं / यह स्थिति ठीक इसी कहावत जैसी है कि (कोई कहे) मेरी मां बांझ है / जगत में तो परिग्रह से ही नरक जाते हैं तथा परिग्रह ही जगत में निंद्य है / ज्यों-ज्यों परिग्रह छोडा जाता (छूटता) है त्यों-त्यों संयम नाम प्राप्त करता (होता) है। पर इस तथ्य को तो छोड दिया है तथा हजारों लाखों रुपये की दौलत, घोडे, बैल, रथ, पालकी तो सवारी के लिये तथा चाकर (नौकर) कूकर (कुत्ता, उपलक्षण से पालतू जानवर) तथा कडे-मोती पहन कर, थुरमापावडी बौढे (?-संभवतः जरी वाली रेशमी चादर ओढता) है, जैसे नरक-लक्ष्मी से पाणिग्रहण करने को वर के सादृश्य है। चेले-चांटी (शिष्य आदि) रूपी फौज तथा चेली (शिष्या) रूपी स्त्री, ऐसे राजा के सदृश्य वैभव सहित होते हुये भी अपने को दिगम्बर मानता है / इसको दिगम्बर कैसे माना जा सकता है ? यह वास्तव में दिगम्बर नहीं है / हंडावसर्पिणी के पंचम काल की यह मूर्ति विधाता ने घडी (बनाई) है, मानों सप्त व्यसन की मूर्ति ही है अथवा मानों पापों का पहाड ही है अथवा मानों जगत को डुबाने के लिये पत्थर की नाव ही है / कलिकाल का गुरु और कैसा होता है ? आहार के लिये प्रति दिन नग्न वृत्ति आदरता है तथा भक्तों को बुलाता है / स्त्रियों के लक्षण देखता है, तथा इस बहाने स्त्रियों का स्पर्श करता है / स्त्रियों के मुखकमल को
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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