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________________ 38 ज्ञानानन्द श्रावकाचार यहां प्रश्न :- ऐसे निर्माल्य को दोष कैसे कहा ? भगवान को चढाया हुआ द्रव्य ऐसा निंद्य कैसे हुआ ? उसका समाधान :- हे भाई ! ये (अरिहन्त) सर्वोत्कृष्ट देव हैं / उनकी पूजा करने में इन्द्र आदि देव भी समर्थ नहीं / उनके लिये कोई भक्त पुरुष अनुराग से द्रव्य चढाने के बाद वापस उस स्थान से उस चढाये हुये द्रव्य को बिना दिये ग्रहण करे तो उस पुरुष ने देव, गुरु, धर्म का महा अविनय किया। बिना दिये का अर्थ यह है कि अरिहन्त देव तो वीतराग हैं, वे स्वयं तो किसी को देते नहीं, अत: बिना दिया ही कहा जावेगा। जैसे राजा आदि बडे पुरुष को कोई वस्तु भेंट करके उसके बिना दिये ही ले तो उसे राजा महादंड देता है - इसीप्रकार निर्माल्य का दोष जानना। ___ भगवान के अर्थ चढाया गया सारा द्रव्य परम पवित्र है, महा विनय करने योग्य है, परन्तु (उसे बिना दिये) ले लेना महा अयोग्य है, इसके समान अन्य अयोग्य कुछ नहीं। अत: निर्माल्य वस्तुओं की खरीद बिक्री भी नहीं करनी चाहिये / निर्माल्य वस्तु लेने वाले को उधार भी नहीं देना चाहिये। - बहन, पुत्री, सुहागन स्त्री को धन उधार नहीं देता, इत्यादि अन्याय पूर्वक होने वाले सब ही कार्यो को धर्मात्मा छोडते हैं / जिन कार्यों से अपयश हो, अपने परिणाम संक्लेश रूप रहें अथवा शोक भय रूप रहें उन कार्यो को छोडे तब सहज ही धर्मात्मा हो ऐसा भावार्थ जानना / इसप्रकार प्रथम प्रतिमा का धारक संयमी नीति मार्ग से चलता है / व्रत प्रतिमा . (1) अहिंसा व्रत आगे (श्रावक अपने) घर का भार पुत्र को सौंपकर दूसरी प्रतिमा ग्रहण करता है, वह कहते हैं - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षाव्रत, इन बारह व्रतों को अतिचार रहित पालन करता है, उसे दूसरी प्रतिमा का धारक कहते हैं।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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