SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 37 श्रावक-वर्णनाधिकार वस्तुयें बेचना, उनकी वस्तुयें खरीदना आदि का भी त्याग करता है / हलवाई की बनाई वस्तुओं का त्याग करता है / धोबी से धुलाकर, छींपे से अथवा नीलगर से रंगा कर कपडे बेचने का त्याग करता है। ___ खेती नहीं कराता, भाड में वस्तुयें नहीं भुनाता, भडभूजे एवं लुहार को धन उधार नहीं देता, कोयले की भट्टी नहीं बनवाता, शराब की भट्टी नहीं बनवाता अथवा कोयला, मदिरा व सुरा के बनाने वालों से व्यापार नहीं करता, नदी नाले का काम नहीं कराता / ऊंट, घोडा, भैंसा, बैल, गधा, गाडी, रथ, हल तथा हल के साथ लगने वाली लोहे की कुली, चरस ( कुयें से पानी निकालने का चमडे का पात्र). लाव (कयें से पानी निकालने का मोटा रस्सा) किराये पर. नहीं देता तथा न किराये पर किसी को दिलवाता है, अथवा इन कार्यो के बहाने किसी को उधार देता नहीं / इस (कार्यो) में बहुत पाप है। ___ जिन कार्यो से प्राणी दुःखी हों अथवा उनकी विराधना हो, ऐसे कार्यो को धर्मात्मा पुरुष कैसे करें ? जीव हिंसा से बढकर संसार में और कोई पाप है नहीं, अतः जीव हिंसा सर्व प्रकार छोडने योग्य है / उन्हें धन भी उधार नहीं देता / शस्त्रों (हथियारों) का व्यापार नहीं करता, न शस्त्रों का व्यापार करने वालों को उधार देता / इत्यादि जितने खोटे कार्य हैं उन सबको तजता है एवं खोटे कार्य करने वालों से लेन देन का भी त्याग करता। पाप कार्यो में काम आने वाली वस्तुयें खरीदता नहीं / अन्य के द्वारा पहना हुआ कपडा खरीद कर भी स्वयं नहीं पहनता, न ही शरीर का (अर्थात खुद का पहना) वस्त्र किसी को बेचता है / भिखमंगे आदि दुःखित भीख मांगने वाले जीव जो अनाज आदि वस्तुयें भीख में मांग कर लाये हों उन्हें भी खरीदता बेचता नहीं। देव अरिहंत, गुरु निर्ग्रन्थ, धर्म जिनधर्म के लिये चढाये गये द्रव्य को निर्माल्य कहते हैं, उसका अंश मात्र भी ग्रहण नहीं करता। इसका फल नरक, निगोद है।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy