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________________ 36 ज्ञानानन्द श्रावकाचार गन्ना, कानी ककडी इत्यादि काने फलों में भी लटें उत्पन्न हो चुकी होती हैं, उनका भक्षण छोडता है। सियालै (बरसात में पैदा होने वाली) सब्जियां अर्थात हरित काय में बादलों के निमित्त से बहुत लटें पैदा हो जाती हैं, उनका भक्षण त्यागता है। ___ कदू (काशीफल), तरबूज आदि बडे फलों को लाने तथा खाने में निर्दयपना बहुत उत्पन्न होता है, चित्त मलिन होता है, हाथ में छुरी, चाकू लेकर इन्हें काटने में बडे त्रस जीवों की सी हिंसा के परिणाम प्रतिभासित होते हैं, इसलिये बडे फलों में (के खाने में) विशेष दोष है / केले का भक्षण तजता है, इसके खाने में राग बहुत उत्पन्न होता है / फूल की जाति वाले एवं नरम हरित काय अथवा जिसका छिलका मोटा हो तथा तुरन्त दो टुकडे हो जाने वाले एवं गन्ने आदि की पेली (गांठ), ककडी आदि जिनकी लकीर एवं नींबू तथा इमली के बीज आदि जिनकी जाली गूढ (छिपी )हो, जिसका व्यक्तपना भासित न होता हो, का त्याग करता है। भावार्थ :- इसप्रकार की वनस्पति में निगोदिया जीव होते हैं / हरितकाय में भी निगोदिया जीव होते हैं तथा जिनमें त्रस होवें वे सभी वनस्पतियाँ छोडने योग्य हैं। इसप्रकार के, जिनका कथन आगे करेंगे, उनका व्यापार आदि नहीं करता है - लोहा, लकडी, हड्डी, चमडा - केश (बाल), हींग, चमडे के पात्र में रखे घी, तेल, नमक, हल्दी, साजी, लोंद, रंग, फिटकडी, कुसुंभी, नील, साबुन, लाख, जहर, शहद इत्यादि पंसारीपने का सर्व ही व्यापार निषिद्ध है। हरितकाय का व्यापार, बीधा अन्न आदि जिनमें त्रस जीवों का घात बहुत होता हो, इसप्रकार के सारे ही व्यापार तजता है / चांडाल, कसाई, धोबी, लुहार, निकृष्ट कार्य करने वाले ढेढ, डोम, भील, थोरी, वागरी, साठया, कुंजडा, नीलगर (रंगरेज), ठग, चोर, पासीगर (उठाईगीरा) इत्यादि के द्वारा किये जाने वाले कार्य तथा उनसे व्यापार अर्थात उन्हें
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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