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________________ 20 ज्ञानानन्द श्रावकाचार बडाई करता हूं, तो मुझे दोष नही हैं / एक राग-द्वेष ही से दोष होता है, आपके प्रसाद से मेरे राग-द्वेष विलय को प्राप्त हो गये हैं। ___ शुद्धोपयोगी महामुनि और कैसे हैं ? उनके लिये राग और द्वेष समान हैं, असत्कार और सत्कार समान हैं, उनके लिये रत्न और कोडी समान हैं तथा उनके लिये उपसर्ग और उपसर्ग रहित अवस्थायें समान हैं, उनके लिये शत्रु और मित्र समान हैं / किसप्रकार समान हैं ? वह बताते हैं। ____ पहले तो तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभ्रद, कामदेव, विद्याधर या बडे मंडलेश्वर मुकुटबद्ध राजा इत्यादि बडे महापुरुष मोक्ष-लक्ष्मी के लिये संसार, देह, भोग से विरक्त हो राज्यलक्ष्मी को अनुपयोगी सडे तिनके के समान छोडकर, संसार बंधन को हाथी के बंधन तोडने के समान तोडकर, वन में जाकर दीक्षा ग्रहण करते हैं, निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुद्रा स्वीकार करते हैं / फिर परिणामों के माहात्म्य से नाना प्रकार की ऋद्धियाँ (उन्हें) प्रकट होती हैं। ___ मुनियों की ऋद्धि शक्ति :- कैसी है ऋद्धि कायबल ऋद्धि के बल से चाहे जितना छोटा या बडा शरीर बना लेते हैं, ऐसी सामर्थता होती है। वचनबल ऋद्धि के बल से द्वादशांग शास्त्रों का अन्तर्मुहूर्त मात्र में चिन्तवन कर लेते हैं / आकाश में गमन करते हैं / जल की सतह पर गमन करते हैं फिर भी जल के जीवों को जरा भी कष्ट नहीं होता / धरती में डूब जाते हैं पर पृथ्वीकाय के जीवों को कष्ट नहीं होता / कहीं विष बहता हो और वे शुभ दृष्टि से देखलें तो (वह विष) अमृत हो जाता है, पर मुनि महाराज ऐसा करते नहीं हैं। __इसीप्रकार कहीं अमृत फैल रहा हो तथा मुनि महाराज क्रूर दृष्टि से देख लें तो (वह अमृत) विष हो जावे, पर ऐसा भी वे करते नहीं हैं / दया और शान्त दृष्टि से देखें तो कई योजन पर्यन्त के सब जीव सुखी हो जावें तथा दुर्भिक्ष आदि ईति-भीति के दुःख मिट जावें। पर ऐसी शुभ ऋद्धि दया बुद्धि से फैले तो दोष नहीं है / यदि क्रूर दृष्टि से देखें तो कितने ही योजन के जीव भस्म होजावें, पर ऐसा करते नहीं /
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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