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________________ वंदनाधिकार 21 उनके शरीर का गंधोदक, नव द्वारों से निकलने वाला मल, चरणों की नीचे की धूल, शरीर का स्पर्श की हुई हवा (अन्य जीवों के) शरीरों को लगे तो लगते ही कोढ आदि सर्व प्रकार के रोग नियम से नष्ट हो जावें। महामुनिराज ने किसी गृहस्थ के घर में आहार किया हो तो उसके (घर बने) भोजन में नाना प्रकार की अटूट रसोई (भोजन सामग्री) हो जावे, उस दिन चक्रवर्ती की सारी सेना भी वहां भोजन करले तो भी भोजन सामग्री खत्म न हो, तथा चार हाथ की (अर्थात छोटी सी) रसोई के क्षेत्र में भी ऐसी अवगाहना शक्ति (स्थान देने की शक्ति) हो जावे कि चक्रवर्ती की सारी सेना उसमें स्थान प्राप्त करले तथा अलग-अलग बैठकर भोजन करले, तब भी स्थान की कमी न हो / जहां महामुनि आहार करलें उसके (गृहस्थ के) द्वार पर पंच आश्चर्य हों / इन पांच आश्चर्यों के नाम इस प्रकार हैं - (1) रत्नवृष्टि (2) पुष्प वर्षा (3) गंधोदक वृष्टि (4) जय जयकार (5) दुंदुभिवादन, ये पांच आश्चर्य जानना / ___ आहारदान का फल :- सम्यग्दृष्टि श्रावक मुनिराज को एक बार आहार दे तो वह (अगले भव में ) कल्पवासी देव ही बने। मिथ्यादृष्टि एक बार मुनिराज को आहार दे तो उत्तम भोग भूमिया मनुष्य होकर बाद में परंपरा से मुक्ति प्राप्त करे / शुद्धोपयोगी मुनिराज को एक बार आहार देने का ऐसा फल होता है। मुनि मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यय ज्ञान के धारी होते हैं, इत्यादि अनेक प्रकार के गुणों से संयुक्त होने पर भी कोई नीच पुरुष आकर मुनिराज को गाली दे या उपसर्ग करे तो भी उस पर किंचित मात्र भी क्रोध नहीं करते, परम दयालु बुद्धि से उसका भला ही चाहते हैं, तथा ऐसा विचार करते हैं कि यह भोला जीव है, इसे अपने हित अहित का विवेक नहीं है / यह जीव इन परिणामों से बहुत दु:ख पावेगा / हमारा तो कुछ बिगाड है नहीं, परन्तु यह मनुष्य संसार समुद्र में डूबेगा। इसलिये यदि हो सके तो समझा देना चाहिये - ऐसा विचार कर
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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