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________________ कुदेवादि का स्वरूप 289 थी ? लक्ष्मी के बिना पुरुष धनवान कैसे होते थे ? ये प्रत्यक्ष विरुद्ध बातें कैसे सत्य होना संभव है? ___ कोई कहता है कि कोई राक्षस पृथ्वी को पाताल में ले गया, फिर वराह का अवतार हुआ जिसने पृथ्वी का उद्धार किया। उन्हें ऐसा विचार नहीं कि ये पृथ्वी शाश्वत थी तो राक्षस कैसे हर ले गया ? कोई कहता है कि सूर्य कश्यप राजा का पुत्र है तथा बुद्ध चन्द्रमा का पुत्र है, शनीचर सूर्य का पुत्र है, हनुमानजी बंदरी के कान में मैल से पुत्र हुये। द्रोपदी को महासती कहते हैं तथा उसके पांच पांडव पति भी कहते हैं / उन्हें विचार नहीं कि कश्यप राजा की पत्नी के गर्भ में इतना भारी विमान कैसे रहा होगा ? चन्द्रमा तथा सूर्य तो विमान हैं, उनके बुद्ध तथा शनीचर पुत्र कैसे होंगे तथा कुँवारी स्त्री के कान के मैल से पुत्र कैसे होगा ? द्रोपदी के पांच पति होने पर भी उसके सतीपना कैसे रहा? ये सब बातें भी प्रत्यक्ष विरूद्ध हैं, इनका सत्य होना कैसे संभव हो ? इत्यादि भ्रम. बुद्धि करके जगत भ्रम रहा हैं, जिसका वर्णन कहां तक करें ? ___ यह बात न्याय संगत ही है कि संसारी जीव को ही भ्रम बुद्धि न हो तो किसको हो ? किसी पंडित ज्ञानी पुरुष के तो भ्रम बुद्धि होती नहीं / यदि पंडित ज्ञानी पुरुषों में भी भ्रम बुद्धि हो तो फिर संसारी जीवों में तथा पंडित ज्ञानी पुरुषों में विशेष अन्तर क्या हुआ (दोनों एक जैसे हुये) ? धर्म है वह तो लोकोत्तर है / भावार्थ :- धर्म प्रवृत्ति तो लोक-रीति से उल्टी होती है, लोक की प्रवृत्ति तथा धर्म की प्रवृत्ति में परस्पर विरोध है, ऐसा जानना / ___ आगे जगत की अन्य भी विडम्बनायें दिखाते हैं - कई व्यक्ति तो बड, पीपल, आंवला आदि नाना प्रकार के वृक्षे जो एकेन्द्रिय वनस्पति हैं, उन्हें यह मनुष्य पंचेन्द्रिय होकर भी पूजता है तथा उनकी पूजा करके फल चाहता है / वे बहुत से बहुत फल पावेंगे तो पंचेन्द्रिय से उल्टे एकेन्द्रिय होने रूप फल पावेंगे, यही बात युक्त भी है / जैसे कोई व्यक्ति
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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