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________________ 288 ज्ञानानन्द श्रावकाचार करेंगे, पार्वती स्त्री को गणेश (हाथी जैसे मुख वाला) पुत्र कैसे होगा? समुद्र तो एकेन्द्रिय जल है, उसके चन्द्रमा पुत्र कैसे होगा / यह हनुमान पवनजय नाम के महामंडलेश्वर राजा का पुत्र था, यह बात तो संभव है / बाली, सुग्रीव, हनुमान आदि वानर वंशी (मनुष्य थे बंदर नहीं, उनके वंश का नाम बानर था) थे तथा महा पराक्रमी विद्याधरों के राजा थे। ये विद्याधर राजा वानर का रूप भी बना लेते थे, अन्य भी अनेक प्रकार के रूप बना लेते थे / इनको ऐसी हजारों विद्यायें सिद्ध थीं जिनसे वे आश्चर्यकारी चेष्ठायें करते थे / ___ कोई ऐसा कहे कि वे तो वानर ही थे, उन्हें ऐसा विचार नहीं कि तिर्यंच में ऐसा बल पराक्रम कैसे होगा कि जिससे संग्राम में लड सकें तथा रामचन्द्रजी आदि राजाओं से बात कर सकें, मनुष्य की भाषा कैसे बोलेंगे? इसीप्रकार रावण आदि राक्षसवंशी विद्याधरों के राजा थे, जो राक्षस न होकर राक्षसी विद्या आदि हजारों विद्याओं से बहुत रूप आदि बनाने की नाना प्रकार की क्रियायें करते थे। लंका स्वर्ण की थी तो आग से कैसे जली ? ___ कोई ऐसा कहते हैं कि वासुकि राजा फण के ऊपर धरती को धारण किये हैं तथा पृथ्वी सदा अचल है / परन्तु कृष्णजी ने सुमेरू पर्वत को तो मथानी बनाया तथा वासुकि राजा को रस्सा बनाकर उससे समुद्र को मथा तथा मथने से लक्ष्मी, कौस्तंभ मणि, पारिजात अर्थात फूल, सुरा अर्थात शराब, धन्वंतरि वैद्य, चन्द्रमा, कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी, रंभा देवांगना, सात मुंहवाला घोडा, अमृत, पंचानन शंख, विष, कमल ये चौदह रत्न निकाले / उन्हें ऐसा विचार नहीं कि वासुकि राजा को पृथ्वी के नीचे से निकाल लिया तो पृथ्वी किसके आधार पर रही ? सुमेरू को उखाड लिया तो उसे शाश्वत कैसे कहते हो ? चन्द्रमा आदि चौदह रत्न अब तक समुद्र में थे तो चन्द्रमा के बिना आकाश में गमन किसका होता (दिनरात कैसे होते थे) था, चांदनी कौन करता था तथा एकम, दोज आदि तिथियां एवं कृष्ण, शुक्ल पक्ष तथा महिना, वर्ष की प्रवृत्ति कैसे होती
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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