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________________ 218 ज्ञानानन्द श्रावकाचार हे स्वामी, हे नाथ ! सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र का स्वरूप कहें, ध्यान का स्वरूप कहें, आर्तध्यान, रौद्रध्यान का स्वरूप तथा धर्मध्यान, शुक्लध्यान का स्वरूप कहें / चौसठ ऋद्धियों का स्वरूप कहें / तीन सौ तिरेसठ (363) कुवाद के धारकों का स्वरूप कहें, बारह अनुप्रेक्षा का स्वरूप कहें, दशलक्ष्ण धर्म तथा सोलह कारण भावनाओं का स्वरूप कहें। सप्त नय, सप्त भंगी का तथा द्रव्यों के सामान्य गुण तथा विशेष गुणों का स्वरूप कहें तथा अधोलोक, मध्यलोक, ऊर्ध्वलोक की रचना बतावें, द्वादशांग का स्वरूप तथा केवलज्ञान का स्वरूप बतावें / इन सहित मैं सर्व तत्वों का स्वरूप जानना चाहता हूँ। हे भगवान ! जीव कौनसे पाप करने के फल में नरक जाता है, तिर्यंन्च किस पाप के करने से होता है। किन परिणामों से मनुष्य होता है, किस पुण्य के उदय में देव पर्याय पाता है निगोद क्या करने से जाता है, वह बतावें ? विकलत्रय क्या करने से होता है, असैनी कौन से पाप करने से होता है। सम्मूर्छन, अलब्ध पर्याप्तक, स्थावर किन खोटे परिणामों से होता है ? अंधा, बहरा, गूंगा, लूला किन पापों के कारण होता है। बौना, कूबडा, विकलांग, अधिक अंगी कौन से पाप से होता है / कोढी, दीर्घ रोगी, दरिद्र, कुरूप शरीर किन पापों से होता है ? मिथ्यात्वी, कुव्यसनी, अज्ञानी, अभागा, चोर, कषायी, जुवारी, निर्दय, अक्रियावान, धर्म से परान्मुख, पाप कार्यों में आसक्त, अधोगामी किन पापों से होता है? शीलवान, सन्तोषी, दयावान, संयमी, त्यागी, वैरागी, कुलवान, पुण्यवान, रूपवान किन पुण्य से होता है ? निरोग, बुद्धिमान, विचक्षण, पंडित, अनेक शास्त्रों का पारगामी, धीर, साहसिक, सज्जन पुरुषों के मन को मोहनेवाला, सबका प्यारा, दानेश्वर, अरिहन्त देव का भक्त, सुगतिगामी कैसे पुण्य में होता है? इत्यादि प्रश्नों का स्वरूप (समाधान) आपकी दिव्यध्वनी से सुनना चाहता हूं / मुझ पर अनुग्रह कर, दया बुद्धि से मुझे बतायें।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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