________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार ____ सरस्वती और कैसी है? जगत की माता है, सर्व जीवों को हितकारी है, परम पवित्र है / पुनः कुवाद रूपी हाथी को विदीर्ण करने अथवा परिहार करने के लिये वाद ऋद्धि के धारी महामुनि रूपी शार्दूल सिंह की माता है। जिन प्रणीत वाणी और कैसी है ? अज्ञान अंधकार का नाश करने के लिये जिनेन्द्र देव रूपी सूर्य की किरण है। ज्ञानामृत की धारा बरसाने के लिये मेघमाला है, इत्यादि अनेक महिमाओं को धारण करती है / ऐसी जिनवाणी को मेरा नमस्कार हो / यहां मैंने स्वरूपानुभवन का विचार किया है, वह इस कार्य की सिद्धि ही है / इसप्रकार जिनवाणी की स्तुति और महिमा का वर्णन किया ! निर्ग्रन्थ गुरु की स्तुति आगे निर्ग्रन्थ गुरु की महिमा स्तुति करते हैं / जिसे हे भव्य ! तू सावधान होकर भली प्रकार सुन। . निर्ग्रन्थ गुरु कैसे हैं ? उनका चित्त दयालु है, स्वभाव वीतराग है, तथा प्रभुत्वशक्ति से आभूषित हैं। जिसप्रकार राजपुत्र बालक नग्न निर्विकार शोभित होता है तथा सर्व मनुष्यों को एवं स्त्रियों को प्रिय लगता है तथा मनुष्य और स्त्रियाँ उसके रूप को देखना चाहती हैं एवं आलिंगन करती हैं फिर भी स्त्री के परिणाम निर्विकार ही रहते हैं , सरागता आदि को (यहां मुख्यतः काम भाव से अर्थ है ) प्राप्त नहीं होते हैं, उसीप्रकार जिनलिंग के धारी मुनि बालक के समान निर्विकार शोभित होते हैं। सर्वजनों को प्रिय लगते हैं, सब स्त्री-पुरुष मुनियों के रूप को देख-देख कर तृप्त नहीं होते हैं अथवा वे निर्ग्रन्थ नहीं हुये हैं परन्तु अपने निर्विकार आदि गुणों को ही प्रकट कर रहे हैं। शुद्धोपयोगी मुनि का स्वरूप :- शुद्धोपयोग मुनि ध्यानारूढ हैं तथा आत्म स्वभाव में स्थित हैं। ध्यान के बिना एक क्षण मात्र भी गवाते