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________________ 214 ज्ञानानन्द श्रावकाचार आकर सुख भोगो, अपने किये का फल भोगो / करोडों प्रकार के वाद्ययंत्र बजते हैं, नृत्य होता है, नाटिकायें होती हैं तथा अनेक कला चतुराईयों सहित हाव भाव के द्वारा कोमल शरीर वाली देवांगनाओं के कटाक्ष हैं / देवांगनाओं के स्वरूप का वर्णन :- वे देवांगनायें निर्मल, सुगंधमय, चन्द्रमा की किरणों से असंख्यात गुणी प्रकाशमय तथा सुख देनेवाली हैं / देवांगनायें और कैसी हैं ? तीक्ष्ण कोकिल के जैसा कंठ है, मिष्ट मधुर वचन बोलती हैं। तीखे मृग के सदृश्य बडे नेत्र हैं, चीते जैसी कटि है, स्फटिक के समान दांत हैं, उगते सूर्य जैसी हथेलियां तथा पगतलियां हैं / देवांगनायें और कैसी हैं ? बारह वर्ष की राजपुत्री जैसी शोभित होती है उससे भी असंख्यात गुणी अतुलनीय शोभा को लिये सम्पूर्ण आयु पर्यन्त एक दशा रूप रहती हैं। भावार्थ यह है कि वे तरुणाई तथा वृद्धपने को प्राप्त नहीं होती हैं, उनकी दशा बालिका के समान सदैव एक-सी बनी रहती है / देवांगनायें और कैसी हैं ? मानों समस्त सुगंधों का पिंड है, मान सारे गुणों का समूह ही हैं। सर्व विद्याओं की ईश्वर (जानकार) हैं, सर्व कला चतुराईयों की अधिपति है, सर्व लक्ष्मी की स्वामी हैं, अनेक सूर्यों की कांति को जीतती हैं, अनेक कामदेवों के शरीरों से उनका शरीर उत्पन्न हुआ है। ___ देव-देवियां और कैसी हैं ? देव तो देवांगनाओं के मन को हर्षित करते हैं तथा देवांगनायें देवों के मन को हरती हैं एवं हंस की चाल को जीतती हैं। विक्रिया के द्वारा अनेक शरीर बनाती हैं तथा अनेक तरह के नृत्य करती हैं / ऐसी देवांगनायें जो अनेक शरीर बना लेती हैं उन्हें देव युगपत एक काल में सारी देवांगनाओं को भोगते हैं / वे देव भी अनेक शरीर बनाकर भिन्न-भिन्न महलों में सुगंधित, महाकोमल, करोडों चन्द्रमासूर्य के प्रकाश के सदृश्य शान्तिमय, मन को प्रसन्न करने वाले प्रकाश से देदिप्यमान अनेक प्रकार के कल्पवृक्षों के फूलों से आभूषित सेज पर विराजते हैं।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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