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________________ स्वर्ग का वर्णन 213 जाति का अत्यन्त सुगंधित (सर्वश्रेष्ठ चन्दन) अथवा कस्तूरी अथवा करोडों रुपये तोला के इत्र से भी अनन्त गुणा सुगंधित शरीर है तथा इस ही प्रकार की सुगंध उनके स्वांस-उस्वांस में आती है / उनका रंग स्वर्णमय अथवा तपे हुये स्वर्ण के समान लाल अथवा ऊगते सूर्य के समान लाल अथवा स्फटिक मणि के समान सफेद है। वे अनेक प्रकार के रत्नमय आभूषण पहने हैं तथा मस्तक पर मुकुट शोभित है / हजारों वर्ष बाद मानसिक अमृतमय आहार लेते हैं तथा कई महिनों बाद स्वांस लेते हैं, करोडों चक्रवर्ती के समान बल है / अवधिज्ञान से अगले-पिछले भवों को, दूरवर्ती पदार्थो को, गुप्त पदार्थो को तथा सूक्ष्म पदार्थो को स्पष्ट निर्मल जानते हैं / आठ ऋद्धियों, अनेक विद्याओं तथा विक्रियाओं से संयुक्त हैं / जैसी इच्छा हो वैसा कौतुहल करते हैं / विमान की भूमि भी रेशम से असंख्यात गुणी कोमल है / धूल अनेक प्रकार के रत्नों के चूर्ण के सदृश्य कोमल है / मिट्टी गुलाब, अम्बर, केवडे, केतकी, चमेली, सेवती, रायबेल, सोनजुही, मोगरा आदि पुष्पों के चूर्ण समान सुगन्धित है। कहीं अनेक प्रकार के फूलों से सुगन्धित बावडी है। प्रकाश करोडों सूर्यों के ताप रहित शान्तिमय है / मंद सुगंध पवन चलती है, अनेक प्रकार के रत्नमय चित्र हैं / अनेक प्रकार के रत्नों की शोभा को लिये दोनों कोट शोभित हैं तथा निर्मल जल से भरी खाईयां शोभित होती हैं / अनेक जाति के कल्पवृक्षों आदि से संयुक्त वन शोभित हैं / वे वन अनेक बावडियों, जलाशयों, पर्वतों, शिलाओं से शोभायमान हैं तथा वहां जाकर देव क्रीडा करते हैं। देवों के निवासों में अनेक प्रकार के रत्न लगे हैं अर्थात वे रत्नमय हैं / उन (निवासों) पर ध्वजदंड शोभित हैं, ध्वजायें इसप्रकार हिलती हैं मानों धर्मात्मा पुरुषों को हार्दिक रूप से आमंत्रित करती हैं - आओ, आओ, यहां ऐसा सुख है जैसे तीन लोक में अन्यत्र दुर्लभ है। अत: यहां
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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