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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार कुल्ला (मुंह का पानी उगलना) - कय (उल्टी-वोमिटिंग) नहीं डालना, मल-मूत्र का क्षेपण नहीं करना, स्नान नहीं करना, गालियां नहीं बकना, केश नहीं मुंडाना, खून नहीं निकलाना, नाखून नहीं कटाना। फुसी अथवा पांव आदि की खाल डालना नहीं, नीला-पीला पित्त नहीं डालना, वमन न करना, भोजन पान नहीं करना, औषध अथवा चूर्ण नहीं खाना, पान-सुपारी नहीं चबाना, दांत का मैल, आंख का मैल, नाखूनों का मैल, नाक का मैल, कान का मैल इत्यादि मैल नहीं निकालना / गले का मैल, मस्तक का मैल, शरीर का मैल, पांवों का मैल नहीं उतारना। गृहस्थपने की वार्ता नहीं करना, माता-पिता, कुटुम्ब, भ्राता, समधी, समधिन आदि लौकिक जनों की सुश्रूषा नहीं करना / सास, जिठानी, ननद आदि के पांव नहीं लगना / धर्म शास्त्र के अतिरिक्त लेखन क्रिया नहीं करना और न पढना / किसी वस्तु का बटवारा नहीं करना, अंगुलियां नहीं चटकाना, आलस्य नहीं करना, मूंछों पर हाथ नहीं फेरना। दीवार का सहारा लेकर नहीं बैठना, गद्दी तकिये नहीं लगाना, पांव फैलाकर अथवा पांव पर पांव रखकर नहीं बैठना / छाने (कण्डे) नहीं थापना, कपडे नहीं धोना, दालें नहीं दलना, शाली (तन्दूल -चांवल) आदि नहीं कूटना, पापड-मंगोडी नहीं सुखाना, गाय-भैंस आदि तिर्यन्च नहीं बांधना। राजा आदि के भय से भाग कर मंदिर में नहीं जाना (छुपना नहीं)। रुदन नहीं करना, राजा-चोर-भोजनदेश आदि की विकथा नहीं करना। बर्तन गहने (जेवर) शस्त्र आदि नहीं बनवाना / अंगीठी जला कर नहीं तपना / रुपये -मोहर आदि नहीं परखना। प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा हो जाने के बाद प्रतिमाजी के टांकी नहीं लगाना। प्रतिमाजी के अंगों पर केसर-चंदन आदि नहीं लगाना। प्रतिमाजी के नीचे सिंहासन पर वस्त्र नहीं बिछाना। भगवान सर्वोत्कृष्ट वीतराग हैं, इसलिये जो वस्तुयें सरागता की कारण हों उनका संसर्ग (प्रतिमाजी से) दूर ही रखना।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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