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________________ 103 विभिन्न दोषों का स्वरूप कुछ कुबुद्धि लोग अपने मान के पोषण के लिये नाना प्रकार के सरागता के कारणों को मिलाते हैं, उसके दोषों का क्या कहना ? मुनि महाराज को भी तिल-तुस मात्र परिग्रह रखने का निषेध है, तब भगवान के केसर आदि का संयोग कैसे हो सकता है? ___ यहां कोई प्रश्न करे चमर, छत्र, सिंहासन, कमल आदि के लिये भी इन्कार क्यों नहीं किया ? उसे उत्तर देते हैं ये सरागता के कारण रूप नहीं हैं, प्रभुत्व को दर्शाने वाले हैं / जल से अभिषेक किया जाता है, वह स्नान कराना आदि विनय के कारण किया जाता है / इनके गंधोदक को लगाने से पाप गल जाते हैं अथवा धुल जाते हैं / ये वीतराग भगवान चंवर, छत्र, सिंहासन से अलिप्त रहते हैं, इसलिये जो वस्तुयें विनय की साधन हों, उसका दोष नहीं है तथा जो विपर्यय का कारण हैं उनका दोष गिना जाता है, क्योंकि भगवान का स्वरूप निरावरण ही है / मंदिरजी में पगडी बांधने का कार्य करना नहीं, काच में मुंह नहीं देखना, नाखून चिमटी आदि से केश नहीं उपाडना, घर से शस्त्र बांधकर मंदिर जी में नहीं आना / खडाऊ, चप्पल पहन कर मंदिर जी में गमन नहीं करना, निर्माल्य खाना नहीं, न बेचना, न खरीदना / मंदिरजी का द्रव्य उधार भी नहीं लेना। स्वयं पर चमर ढुरावना नहीं, हवा नहीं कराना तथा न अन्य पर करना / तेलादि का विलेपन अथवा मालिश नहीं करना, न कराना / जिन देव-शास्त्र-गुरु-धर्म को मानना उचित है , उन्हीं को पूजना योग्य है / प्रतिमाजी के निकट नहीं बैठना, यदि पांव दुखने लगें तो दूर जाकर बैठना चाहिये / काम विकार रूप नहीं परिणमना, स्त्रियों के रूप लावण्य को विकार भाव से नहीं देखना। मंदिरजी की बिछायत, नगाडे, तबला आदि वस्तुयें विवाह आदि में काम में नहीं लेना तथा मंदिरजी का धन उधार भी नहीं लेना, न ही मूल्य देकर खरीदना / जिस वस्तु के लिये ऐसा संकल्प करले कि ये वस्तु देव-गुरु-धर्म के लिये है, फिर जिस वस्तु
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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