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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [221 ParNTONTROTraNareerwear सब त्रेसठ पदवी पुरुष होय, निज पुन्य उदय फल होय सोय। केई मुनिसुव्रत धारै भविक जीव,केई श्रावकव्रत पालैं सदीव॥ केई कर्मनाश केवल उपाय, जै सिद्ध भूम त्रय जगत राय। इम वरतै चौथा काल रुप, पंचम छट्ठम दुखको स्वरूप॥ तहां श्वेत वरन वैताड जान, जैतापर जिनमंदिर प्रमान। जै समोसरण रचना विशाल, जै सिंहासन पंकज रिशाल॥ जै सोहै श्री जिनराज भूप, सात आठ अधिक प्रतिमा अनूप। जै सुर सुरपति खेचर जु सर्व पूजत जिनपद ले ले सुदर्व॥ बहु भक्ति करें जिनगुण सुगाय, जै नृत्य करैं बाजे बजाय। मनहरष बढे जिनदरश पाय,भविलालसदा बलबल सुजाय॥ घत्ता-दोहा रुपाचल पर जिन भवन, ताकी यह जयमाल। मन वच काय लगायके, लाल नमत तिहूँ काल॥२१॥ इति जयमाल। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिनभवन अकीर्तम, ताको पाठ पढै मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री मंदिरमेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र संबंधी रुपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम् /
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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