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________________ 220] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान WIKIPORNKIKINNAROKANKSarararar इसविध धूप बनाय गाय गुण, श्री जिन आगे खेवो। इन कर्मनको दूर करनको, प्रभु चरननको सेवो॥वो जिन.॥ मंदिर गिरि. ॥८॥ॐ ह्रीं. ॥धूपं // सुन्दर सरस मनोहर मीठे, फल उत्तम घर लावो। भविजन पूजा करत जिनेश्वर, मनवांछित फल पावो॥वोजिन. मंदिर गिरि. // 9 // ॐ ह्री. // फलं॥ जल फल अर्घ बनाय थाल भर, नाचत ताल बजावो। पूजा कर जिनराज चरनकी, नरनारी गुण गावो॥वो जिन. / / मंदिर गिरि. ॥१०॥ॐ ह्रीं. // अर्घ // दोहा-मंदिरगिर दक्षिण दिशा, भरतक्षेत्र सुखकार। रूपाचलपर जिनभवन, पूजों अर्घ संवार॥११॥ ____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दक्षिणदिश भरतक्षेत्र संबंधी रुपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ अघु॥ अथ जयमाला-दोहा मंदिरमेर सुहावनो, भरतक्षेत्र सु विशाल। विजयारधपर जिनभवन, सुन तिनकी जयमाल // 12 // पद्धडी छन्द जै जै श्री मंदिरमेर चंग, चौरासी सहस जोजन उतंग। जै ताकी दक्षिण दिश निहार, तहां भरतक्षेत्र षट्खंड धार॥ जहां छहों काल वरतै प्रमान, सागर दस कोड़ाकोड जान। जै भोगभूम है तीन काल, जहां कल्पवृक्ष सोहै विशाल॥ जब चौथो काल करै प्रवेश, तब कर्मभूमि लागी अशेष। जै तीर्थंकर उपजै महान, चक्री बलहर प्रतिहर सु जान॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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