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________________ 2222] 222] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान arwariNarNIRNORNNNrwarerararera अथ मंदिरमेरुके उत्तरदिश ऐरावतक्षेत्र संबंधी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 42 ___ अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द मंदिर गिरकी उत्तर दिशमें ऐरावत शुभ क्षेत्र महान। तहां रुपाचल चंद्रकिरनसम, उज्जल वरन पडो उर आन॥ तापर श्रीजिनभवन अनूपम, कनक रतनमई बनो सु जान। समोसरन रचनाको धारै तहां विराज श्री भगवान // दोहा-सुर खेचर पूजा करें, हमें शक्ति सों नांहि। आह्वानन तिनको करें, पूजो सज घर मांहि // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके उत्तर ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी रुपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनं। ___ अथाष्टकं-कुसुमलता छन्द क्षीर वरन क्षीरोदधके सम, उज्वल जल ले परम सुजान। श्रीजिन चरन चढ़ावत भविजन, बाढ़े पुन्य होय अघ हान॥ मदिरगिरकी उत्तर दिशमें, क्षेत्र सु ऐरावत शुभ थान। तहां रूपाचलपर जिनमंदिर, जजत जिनेश्वर श्री भगवान॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके उत्तर ऐरावत क्षेत्र संबंधी रुपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ जलं॥ परम सुगन्धित चंदन लेकर, तामें केसर डारत है। श्री सर्वज्ञ जिनेश्वरके पद, पूजा कर नज तारत हैं। ___ मंदिर गिर. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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