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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [219 Sarararararararararararararararararary अथाष्टकं - चाल छन्द वो जिन पूजो रे भाई, भला जिन पूजो रे भाई। यह उत्तम नरभव पायकै जिन पूजो रे भाई॥ टेक॥ श्वेत वरन मन हरन सु उज्वल, जल लीजै भर थारी। धार देत श्रीजिनवर आगै, प्रभु चरननपर वारी।वो जिन.॥ मंदिर गिरकी दक्षिण दिशमें रुपाचलगिरि सोहै। तापर श्री जिनभवन अनूपम, सुरनरके मन मोहै।वो जिन.॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दक्षिणदिश भरतक्षेत्र संबंधी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ जलं॥ मलयागिर करपूर मिलाकर, केसर रंग भरीजै। चरन पूज जिनराज प्रभुके, भव आताप हरीजै।वो जिन.॥ मंदिर गिरि. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं / शशिकी किरण समान सु उज्वल, अक्षत धोय धरीजे। श्री जिनराज चरनके आगे, पुंज मनोहर दीजे॥ वो जिन.॥ मंदिर गिरि. ॥४॥ॐ ह्री. ॥अक्षतं॥ कमल केतकी जुही चमेली, सुन्दर फूल मंगाये। पूजा कर सर्वज्ञ प्रभुकी, हरष हरष गुण गाये॥वो जिन.॥ मंदिर गिरि. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // लाडू बरफी खुरमा ताजे, रसनाको सुखकारी। पूजत श्री जिनराज प्रभु पद, रोग क्षुधा सब टारी॥वो जिन.॥ मंदिर गिरि. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ रतन अमोलिक कनक थालमें, लेकर आरती कीजे। जगमगजगमगहोत दिवालो, प्रभुदर्शनकरलीजे॥वोजिन.॥ मंदिर गिरि. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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