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________________ 198] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ====== ========== अथ प्रत्येकार्घ-चौपाई मंदिर गिर पूरव दिश सार, गिर पश्चात्य नाम वक्षार। ताके शिखर जिनेश्वर धाम, वसुविध अर्घ जजो तज काम॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी प्रश्चात्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ चित्रकूट वक्षार निहार, मंदिर गिरके पूरव द्वार। तापर श्रीजिन भवन विशाल, अर्घ जजो वसु दर्व संभाल॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी चित्रकूट नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ मंदिर पूरव दिशा पवित्र, पद्मनाम वक्षार विचित्र। श्रीजिन मंदिर गिरके शीस, अर्घ चढ़ाय नमो निस दीस॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी पद्म नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // नलिन नाम वक्षार महान, मंदिर गिरते पूर्व जान। तहां जिन मंदिर सुन्दर जोय, अर्घ जजो उरसों मद खोय॥ ____ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी नलिन नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // मंदिर पूरव है वक्षार नाम त्रिकूट कहो श्रुतधार / ता ऊपर श्रीजिनवर धाम, अर्घ जजो वसुविध धर ध्यान॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी त्रिकूट नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ // प्राच्य नाम वक्षार सु देख, मंदिर.गिरतें पूरव लेख। ताके ऊपर जिनवर गेह, अर्घ जजो उरमें घर नेह // ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी प्राच्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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