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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [199 मंदिरमेरु पूर्व दिश वोर, गिरि वक्षार वैश्रवण जेर। जिनमंदिर तिस ऊपर साद, अर्घ जजों तजके परमाद॥ ___ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी वैश्रवण नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ दोहा-मंदिर माली मेरुके, पूरव दिशा विशाल। अंजनगिरि पर जिनभवन, अर्घ जजत भवि लाल॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी अंजनगिरि नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // अथ जयमाला - दोहा मंदिरगिरि पूरव दिशा, वसु वक्षार रिशाल। तिनपर जिनमंदिर जजों, अब वरनूं जयमाल // 19 // पद्धडी छन्द जै जै श्री मंदिरमेरु सार, जै पीत वरन सुन्दर निहार। नानाविध रतनकी सु खान, जै जगमग जगमग होत जान॥ जै ताकी पूरव दिश वखान, जहाँ षोड़श देश विदेह जान। तहां तीर्थंकरको जन्म होय, सत इन्द्र महोत्सव करैं सोय॥ जै चन्द्र बाहु जिन विरहमान, जिनवर भुजंग प्रभु है महान। जै सुरखग मुनिध्यात्रिकाल,भविजीव निरखनावत सुमाल॥ चक्री हलधर प्रतिहर मुरार सब पुन्य पुरुष उपजैं अपार। जै चौथो काल रहें अतीव, तहां कर्म भूम वरतें सदीव॥ जै दिव्यध्वनि जिन मुख खिरंत सब जीव सुनत आनंद लहंत। जहां श्री मुनिराज करै विहार, तहां श्रावक श्रावकनी अपार॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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