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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [153 Arararararararahararerarararararararary जै वेदी तीन बनी सु ठार, जै सिंहासन पर कमल सार। जै श्रीजिनबिंब विराजमान,सत आठ अधिक प्रतिमा प्रमाण॥ जै मंगल द्रव्य रचे बनाय, वसु प्रात्यहारवरनी न जाय। सुर विद्याधर पूजत सु आय, बहु नृत्य करत बाजे बजाय॥ गुणगान करत चित धरत ध्यान,जै जै जिनवर करूणा निधान। तुमरूप अतुलनैनन सु देख, अति हरषबढो सुरपति विशेख॥ जै जै प्रभु परम दयाल देव, तुम चरणनको हम करत सेव। हमहुको दीजै अभय दान, हम जाचक तुम दाता विधान॥ __ घत्ता-दोहा षोडसगिर वैताडपर, श्री जिनभवन रिशाल। जिनप्रति सीस निवायकै लाल भनी जयमाल॥ इति जयमाल। __ अथाशीर्वाद (कुसुमलता छन्द) मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणनको कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु सम्पति, बा. अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पदले शिवपुर जाय। इत्याशीर्वादः। इति श्री अचलमेरुकी पूरव विदेह संबंधी षोडश रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। I
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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